कोरोना और सीमा पर तनाव के चलते टूट गई 322 सालों से चली आ रही परंपरा

जम्मू। सैकड़ों साल से चले आ रहे चमलियाल मेले पर इस बार कोरोना के साथ-साथ सीमा के तनाव की छाया भी पड़ ही गई। पाक गोलियों से बचाने की खातिर हालांकि वार्षिक मेले का आयोजन नहीं हुआ। कोरोना पाबंदियों के चलते गिनती के ही श्रद्धालु शामिल हुए और इस बार दोनों मुल्कों के बीच शक्कर-शर्बत का आदान-प्रदान भी नहीं हुआ। आसपास के गांवों के लोगों को भी दरगाह तक पहुंचने की मनाही कर दी गई थी, क्योंकि बीएसएफ तथा स्थानीय प्रशासन ने मेले को रद्द करते हुए दरगाह पर आने वालों को चेताया था कि वे उन्हें सुरक्षा मुहैया नहीं करवा सकते हैं तथा कोरोना के कारण सामाजिक दूरी बनाए रखना बेहद मुश्किल काम है। ऐसे में चमलियाल दरगाह जो दोनों देशों के लोगों की आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है, गुरुवार को वहां की रौनक गायब थी। हर साल जहां इस दरगाह पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा रहता था, वहां इक्का-दुक्का स्थानीय श्रद्धालु ही पहुंचे। हालांकि रस्म के अनुसार बीएसएफ के आईजी एनएस जम्वाल, डीआईजी ओपी उपाध्याय के साथ कुछ अन्य अधिकारियों व गांव के पंचसर पंचों के साथ मिलकर बाबा दिलीप सिंह की मजार पर चादर चढ़ाई गई।
प्रशासन ने नहीं दी चमलियाल मेला लगाने की इजाजत
करीब 322 साल से लगातार जिला सांबा के रामगढ़ में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर लगने वाले चमलियाल मेले (उर्स) का आयोजन हर साल जून महीने के चौथे वीरवार को होता है। जम्मू कश्मीर प्रशासन व सीमा सुरक्षा बल की तरफ से मेले के लिए तैयारियां की जाती हैं। परंतु इस साल कोरोना संक्रमण के कारण प्रशासन ने अन्य धार्मिक समारोह की तरह ही इस मेले के आयोजन की इजाजत भी नहीं दी।