2 महीने में 50 कलाकारों ने तैयार की सुंदरकांड पर भरतनाट्यम प्रस्तुति, पहली बार हुआ मंचन

2 महीने में 50 कलाकारों ने तैयार की सुंदरकांड पर भरतनाट्यम प्रस्तुति, पहली बार हुआ मंचन

 शहीद भवन में प्रतिभालय आर्ट्स अकादमी के कलाकारों ने गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस के पंचम सोपान सुंदरकांड पर पहली बार भरतनाट्यम शैली में प्रस्तुत दी। इसमें तुलसीदास द्वारा रचित सुंदरकांड के संगीत को अपने मूल रूप में ही रखा गया है उसे भरतनाट्यम के अनुसार परिवर्तित नहीं किया गया है। सुंदरकांड को भरतनाट्यम गुरू डॉ. मंजू मणि हतवलने द्वारा शास्त्रीय नृत्य शैली भरतनाट्यम एवं अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। इसमें 8 साल से लेकर 40 साल तक के 50 कलाकारों ने प्रस्तुति दी। यह प्रस्तुति 1.30 घंटे की रही।

इन प्रसंगों का भरतनाट्यम में किया सुंदर वर्णन

प्रस्तुति की शुरुआत हनुमानजी के लंका जाने से होती है। जिसमें दिखाया कि समुद्र की यात्रा में एक छलांग लगाकर लंका पहुंच तो गए लेकिन रास्ते में कई राक्षसी बाधाओं का उन्हें सामना करना पड़ा। अपनी बुद्धि, विनम्रता, चातुर्य और बल से उन्होंने समस्त बाधाओं पर विजय प्राप्त की। इसी क्रम में उन्हें विभीषण का महल भी दिखाई दिया। विभीषण से ही यह भी पता चला कि रावण ने सीता जी को अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा हुआ है। इसके बाद हनुमानजी अशोक-वाटिका में जाकर सीता जी से मिलते हैं और उन्हें भगवान राम द्वारा भेजी गई अंगूठी प्रदान करते हैं, जिससे सीता जी को विश्वास हो जाता है कि हनुमानजी को भगवान राम ने ही अपने दूत के रूप में भेजा है। अशोक वाटिका में हनुमानजी का राक्षसों से युद्ध का दृश्य दिखाया गया। इसके बाद वे रावण की राजसभा में उपस्थित हुए। इसके बाद लंका दहन के दृश्य को दिखाया गया। लंका दहल के बाद हनुमानजी लौटकर अशोक वाटिका में आए। इस क्रम में सीता जी ने उन्हें अपना आभूषण चूड़ामणि प्रदान किया। हनुमानजी समुद्र को पार करते हुए पुन: रामचंद्र जी के समक्ष उपस्थित होते है।

लाइव म्यूजिक पर नृत्य प्रस्तुति

मंजू बताती हैं कि सुंदरकांड मंडली द्वारा लाइव प्रस्तुति दी गई। इसके लिए कलाकारों ने 2 महीने की रिहर्सल की। वही 6 दृश्यों में पूरी सुंदरकांड को प्रस्तुत किया गया। साथ ही बताया हनुमान जी का व्यक्तित्व, चरित्र तथा उनके असाधारण कार्यों का वर्णन रामचरित मानस के इसी खंड के द्वारा सबसे प्रभावी रूप से प्रस्तुत हुआ है।