सिकल सेल व थैलेसीमिया के जीन एडिटिंग से इलाज को मिली मंजूरी

ब्रिटेन : आनुवांशिक कैंची से हीमोग्लोबिन की विकृति होगी दूर

सिकल सेल व थैलेसीमिया के जीन एडिटिंग से इलाज को मिली मंजूरी

लंदन। ब्लड से संबंधित दो बीमारियों सिकल सेल एवं थैलेसीमिया से जूझ रहे ब्रिटेन के हजारों लोगों को अपनी तरह का पहला उपचार दिया जाएगा जिससे उनकी बीमारी ठीक हो जाएगी। इसके लिए ब्रिटेन के दवा नियामक ने कड़ी सुरक्षा, क्वालिटी एवं प्रभाव के परीक्षण के बाद बारह वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों के लिए कासगेवी उपचार को मंजूरी दे दी है। इस उपचार की कीमत प्रति मरीज लगभग 10.34 करोड़ होगी तथा इससे सिकल सेल एवं बीटा थैलेसीमिया बीमारी का उपचार किया जाएगा। थैलेसीमिया रोग में मरीज को बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है तथा यह आजीवन चलने वाली एक ऐसी दर्दनाक बीमारी है जो प्राणघातक भी हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि जीन-एडिटिंग उपचार से इन दोनों बीमारियों के दोषपूर्ण जीन को शरीर से हटा कर रोग को खत्म किया जा सकता है। हालांकि इस उपचार की शुरुआत तब की जाएगी जब देश के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ एंड केयर एक्सीलेंस (नाइस) के द्वारा भी इसे मंजूरी दे दी जाएगी। हीमोग्लोबिन में खराबी से होती हैं दोनों बीमारियां : ये दोनों ही आनुवांशिक बीमारियां हीमोग्लोबिन के जीन में दोष के कारण होती हैं। हीमोग्लोबिन का उपयोग रेड ब्लड सेल्स शरीर में आॅक्सीजन ले जाने के लिए करते हैं। सिकल सेल बीमारी में रोगी का शरीर पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बना पाता। इसके परिणामस्वरूप रेड ब्लड सेल्स कठोर बन जाती हैं तथा उनका आकार डिस्क के स्थान पर चंद्राकार हो जाता है। इससे ब्लड सेल्स मर कर खून की नसों में चिपक जाती हैं। रोग से पीड़ित लोगों को तेज दर्द का अटैक आता है जोकि कुछ दिनों या हμतों तक कायम रहता है। जीन-एडिटिंग लाइसेंस वाला पहला उपचार : कासगेवी पहला उपचार है जिसे नए जीन-एडिटिंग टूल क्रिस्पर का उपयोग करने के लिए लाइसेंस प्रदान किया गया है। क्रिस्पर को आनुवांशिक कैंची के नाम से जाना जाता है जोकि वैज्ञानिकों को डीएनए में महत्वपूर्ण परिवर्तन करने में सक्षम बनाती है। इसके आविष्कारकों को वर्ष 2020 में नोबेल प्राइज मिल चुका है।

पहले बोन मैरो का प्रत्यारोपण ही था एकमात्र उपाय

अभी तक सिकल सेल एवं थैलेसीमिया इन दोनों रोगों के इलाज के लिए निकटता से मेल खाने वाले डोनर के बोन मेरो का ट्रांसप्लांट ही एकमात्र उपाय था। हालांकि जोखिम के चलते यह प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती थी क्योंकि इसमें यह खतरा रहता है कि प्रत्यारोपित कोशिकाएं शरीर की अन्य कोशिकाओं पर हमला करने लगती हैं जोकि प्राणघातक हो सकता है।

सिकल सेल में 97% तथा थैलेसीमिया में 93% कारगर

इस दवा का परीक्षण अभी जारी है जिसमें यह पाया गया है कि इससे सिकल सेल के 97 प्रतिशत मरीजों को उपचार के बाद कम से कम एक वर्ष तक तेज दर्द की समस्या नहीं हुई। वहीं एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि उपचार के बाद थैलेसीमिया के 93 प्रतिशत मरीजों को कम से कम एक वर्ष तक खून चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ी। इस दवा के साइड इफेक्ट्स में मतली, थकान, बुखार एवं संक्रमण का जोखिम शामिल हैं। दवा के परीक्षण के दौरान सुरक्षा से संबंधित कोई महत्वपूर्ण चिंता की बात नहीं देखी गई लेकिन मेडिसीन एंड हेल्थकेयर प्रोडक्टस रेगुलेटरी एजेंसी (एमएचआरए) तथा दवा निर्माता इसका उपचार प्राप्त कर रहे मरीजों पर लगातार निगरानी रखेंगे।

बोन मैरो के स्टेम सेल की एडिटिंग सुधारेगी सेहत

बोस्टन की वर्टेक्स फार्मास्यूटिकल्स एवं स्विटजरलैंड की क्रिस्पर थेरेप्यूटिक्स ने कासगेवी नाम का यह उपचार विकसित किया है जोकि दोनों ही प्रकार के रोगियों के बोन मैरो के स्टेम सेल में दोषपूर्ण हीमोग्लोबिन की एडिटिंग करता है, जिससे शरीर स्वस्थ हीमोग्लोबिन का उत्पादन शुरू कर देता है। इसके लिए मरीज की बोन मैरो से स्टेम सेल निकाले जाते हैं तथा उन्हें लैब में मॉलेक्यूलर कैंचियों की सहायता से एडिट किया जाता है, जिससे दोषपूर्ण जीन डिसेबल हो जाते हैं। इसके बाद इन स्टेम सेल्स को मरीज के शरीर में वापस डाला जाता है। इस प्रक्रिया में मरीज को एक माह या उससे अधिक समय तक अस्पताल में रहना पड़ सकता है।