बच्चों ने मंच पर नृत्य के माध्यम से दिखाई देश के 12 राज्यों की संस्कृति और परंपरा

बच्चों ने मंच पर नृत्य के माध्यम से दिखाई देश के 12 राज्यों की संस्कृति और परंपरा

 रवींद्र भवन में चल रहे लोकरंग उत्सव में शनिवार को ‘रचनात्मकता का संसार’ विषय पर संवाद का आयोजन किया गया। साथ ही कर्नाटक, झारखंड, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों के कलाकारों ने नृत्य प्रस्तुति दी। इसके अलावा स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा नृत्य एवं संगीत की मनमोहक प्रस्तुतियां दी गई। कार्यक्रम में निदेशक, जनजातीय लोककला एवं बोली विकास अकादमी डॉ. धर्मेंद्र पारे, प्रमुख सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग रश्मि अरुण शमी एवं अन्य अधिकारी कर्मचारी उपस्थित रहे। उत्सव में महाराष्ट्र के कलाकारों द्वारा गोंधल गायन किया गया। दल के समन्वयक सूर्यकांत भिसे ने बताया कि यह समुदाय विवाह एवं शुभ अवसर पर शुभ कार्य के लिए अपनी परंपरा के अनुसार गीतों को प्रस्तुत करता है। इनकी परंपरा में भवानी माता की आराधना के लिए एवं युद्ध के दौरान रण वाद्य बजाने का कार्य भी यही समुदाय करता रहा है। छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन काल में करपल्लवी भाषा (इशारे की भाषा) के माध्यम से सूचनाओं का आदान प्रदान करते थे, जो जासूसी के काम आती थी।

वाचिक परंपरा के पौराणिक आख्यान गाते हैं

इसके बाद स्कूल शिक्षा विभाग के बच्चों द्वारा नृत्य-संगीत की प्रस्तुति दी। इसके बाद देश के 12 राज्य लम्बाड़ी नृत्य कर्नाटक, असुर नृत्य झारखंड, चकरी नृत्य राजस्थान, वाघेर डांडिया रास गुजरात, धनगिरिगजा महाराष्ट्र, कालबेलिया राजस्थान एवं देशांतर में यूक्रेन के कलाकारों द्वारा नृत्य की प्रस्तुति दी गई। साथ ही हरबोला समुदाय के कलाकारों ने गीतों की प्रस्तुति दी। दल के समन्वयक डॉ. श्रीकृष्ण ने बताया वाचिक परंपरा के पौराणिक आख्यान गाते हैं, जिसमें रामायण, शिव कथा एवं महाभारत के प्रसंगों को प्रस्तुत करते हैं। उनका पहनावा धोती, पगड़ी और सिर पर साफा बांधकर उसमें मयूर पंख लगाकर गांव-गांव फेरी करते हैं।

घुमंतुओं को सामान्य कुटुंब से संबोधित किया जाना चाहिए

इस अवसर पर ‘रचनात्मकता का संसार’ विषय पर संवाद का आयोजन किया गया। संवाद की अध्यक्षता वरिष्ठ अध्येता महाराष्ट्र की डॉ. सुवर्णा रावल ने की। साथ ही देश के विभिन्न क्षेत्र से आए विद्वानों ने अपनी बात रखी। महाराष्ट्र से आर्इं डॉ. सुवर्णा रावल ने कहा कि घुमंतुओं की कोई बाहरी समुदाय नहीं अपितु सामान्य कुटुंब से संबोधित किया जाना चाहिए। भारतीय जीवन पद्धति प्रारंभ से ही सनातन संस्कृति से जुड़ा हुआ है। घुमंतुओं ने वेदों के जटिल ज्ञान को संगीत, कला परंपरा से जोड़कर सरलता से सबके सामने रखा है। शाजापुर से आए डॉ. विद्याशंकर विभूति ने कंजर समाज की रचनात्मकता पर अपनी बात रखी। यह अपने पूर्वजों को महाराणा प्रताप के साथ स्वतंत्रता संग्राम में युद्ध लड़े हैं। शादी के समय इनके समाज में वधू को ढाल उपहार में दिया जाती है। महाअष्टमी के दिन यह अपने समुदाय की सबसे बड़ी पूजा करते हैं।