जूनोटिक संक्रमण से 2050 तक हो सकती हैं 12 गुना मौतें
वाशिंगटन। दुनिया की ज्यादातर महामारियों का कारण बने जूनोटिक संक्रमण की वजह से 2050 तक 12 गुना ज्यादा लोगों की मौत होने की आशंका है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में प्रकाशित अमेरिकी जैव प्रौद्योगिकी कंपनी जिंकगो बायोवर्क्स के शोधकर्ताओं ने शोध में दावा किया है कि जानवरों से इंसानों में होने वाला संक्रमण, जिसे स्पिलओवर या जूनोटिक संक्रमण कहा जाता है। असल में यह ज्यादातर आधुनिक महामारियों का कारण रहा है, जिसमें कोविड-19 भी शामिल है। शोधकर्ताओं ने 60 वर्षों के ऐतिहासिक महामारी विज्ञान डाटा का विश्लेषण करते हुए तेजी से बढ़ते और बार-बार होने वाले जूनोटिक संक्रमण के एक सामान्य पैटर्न का पता लगाया है। विश्लेषण में पाया गया कि वायरस के चार समूहों के कारण फैलने वाले संक्रमण और मौतों की संख्या में 1963 और 2019 के बीच हर साल क्रमश: लगभग पांच और नौ फीसदी की वृद्धि हो रही है। अगर वृद्धि की ये वार्षिक दर जारी रहती है, तो 2020 की तुलना में 2050 में जूनोटिक संक्रमण के मामलों की संख्या चार गुना और मौत के मामलों की संख्या 12 गुना हो जाएगी।
वायरस के चार समूहों पर फोकस, महामारी का खतरा
शोधकर्ताओं के मुताबिक, जलवायु व भूमि उपयोग में बदलाव के साथ जनसंख्या घनत्व और कनेक्टिविटी में वृद्धि से संक्रमण की बढ़ने की आशंका है, जिससे भविष्य में कोविड जैसी महामारी फिर आ सकती है। शोधकर्ताओं ने वायरस के चार समूहों पर ध्यान केंद्रित किया, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य व राजनीतिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण खतरा पैदा करने की क्षमता रखते थे।
24 देशों में 75 जूनोटिक मामलों की पहचान
शोधकर्ताओं ने 1963 और 2019 के बीच 3,150 से अधिक प्रकोपों और महामारियों के मद्देनजर 24 देशों में कुल 75 जूनोटिक मामलों की पहचान की, जिनमें 17,232 मौतें हुईं, जिनमें से 90 फीसदी से ज्यादा यानी 15,771 मौत फिलोवायरस के कारण हुईं।
6 जुलाई को मनाया जाता है विश्व जूनोज दिवस
हर किसी को इस तरह की बीमारियों के बारे में जागरूक होना चाहिए। बहुत सारे लोगों को इन रोगों के बारे में पता ही नहीं होता है, इसलिए लोगों को इसके प्रति जागरूक करने के लिए 6 जुलाई को विश्व जूनोज दिवस मनाया जाता है, ताकि लोग इन बीमारियां से बच सकें।