नहीं रहे फ्रीडम एट मिडनाइट और सिटी ऑफ जॉय के लेखक डोमिनिक लैपियर

नहीं रहे फ्रीडम एट मिडनाइट और सिटी ऑफ जॉय के लेखक डोमिनिक लैपियर

पेरिस। मशहूर फ्रेंच लेखक डोमिनिक लैपियर (91) का निधन हो गया है। डोमिनिक लैपियर की पत्नी डोमिनिक कोंचोन- लैपियर ने बताया डोमिनिक का भारत से विशेष लगाव था और इसी लगाव के चलते भारत की आजादी पर उन्होंने फ्रीडम एट मिडनाइट जैसी कृति की रचना की। कोलकाता की रिक्शा चालक के जीवन पर आधारित उनके नॉवेल सिटी आॅफ जॉय ने भी बहुत ही चर्चित रहा है। उनकी इसी लोकप्रियता को देखते हुए भारत सरकार ने 2008 में डोमिनिक लैपियर को पद्म भूषण से सम्मानित किया था। लैपियर ने अमेरिकी लेखक के साथ कई प्रसिद्ध किताबें लिखी। इसमें- 'ऑर आई विल ड्रेस यू इन मॉर्निंग' (1968), ओ येरुशलम (1972), फ्रीडम एट मिडनाइट (1975), द फिμथ हॉर्समैन (1980), और थ्रिलर इज न्यूयॉर्क बर्निंग शामिल हैं।

6 पुस्तकों की 5 करोड़ प्रतियां बिकी थीं

30 जुलाई, 1931 को जन्मे डोमिनिक लैपियर की कई रचनाएं बेहद चर्चित रही हैं। अमेरिकन लेखक लैरी कोलिन्स के साथ मिलकर लिखी छह पुस्तकों की लगभग 5 करोड़ से अधिक प्रतियां बिकी हैं। इनमें सबसे फेमस पुस्तक थी इज पेरिस बर्निंग। भारत की आजादी पर उनकी पुस्तक फ्रीडम एट मिडनाइट भी बहुत चर्चित रही है। देश की आजादी के बारे में यह एक प्रमाणित पुस्तक मानी जाती है।

रिक्शा चालक के जीवन पर भी लिखी थी पुस्तक

डोमिनिक ने कोलकाता के एक रिक्शा चालक के जीवन पर आधारित पुस्तक सिटी आॅफ जॉय भी लिखी। यह पुस्तक भारत में बहुत ही पॉपुलर रही है। सिटी आॅफ जॉय पर फिल्म भी बनी है। यह पुस्तक इतनी चर्चित रही है कि कोलकाता शहर द सिटी आॅफ जॉय के नाम से जाना जाने लगा। डोमिनिक लैपियर की बियोंड लव (1990) और ए थाउजेंड सन्स (1999) पुस्तकें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेस्ट सेलर रही हैं।

विभाजन का दर्द बयां करती है फ्रीडम एट मिडनाइट

अमेरिकी लेखक हेनरी कॉलिंग्स के साथ मिलकर लिखी किताब फ्रीडम एट मिडनाइट में डोमिनिक ने भारत की आजादी और विभाजन की विभीषिका का दर्द बयां किया था। किताब का पहला संस्करण 1975 में प्रकाशित हुआ था। इसके हिन्दी संस्करण का नाम था- आजादी आधी रात को, जिसका अनुवाद तेजपाल सिंह धामा ने किया था। किताब में बताया गया कि कैसे सांप्रदायिक बदलने की भावना को रोकने महात्मा गांधी ने उपदेश दिए थे। किताब के अनुसार आजादी मिलने के 3 हμते बाद जवाहर लाल नेहरू व सरदार पटेल ने कुछ समय के लिए ही सही भारत को एक अंग्रेज को सौंप दिया, वो अंग्रेज थे माउंटबेटन।