अनंतनाग में आतंकियों से मुठभेड़ 100 घंटे बाद भी जारी
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में आतंकियों के साथ मुठभेड़ रविवार को पांचवें दिन में पहुंच गई। पैरा कमांडो सहित हजारों सैनिक गडोल के घने जंगलों में अंतहीन गोलीबारी में फंसे हैं। ये आतंकी जंगल युद्ध में ट्रेंड हैं। सेना को दूर रखने और मुठभेड़ को लंबा खींचने के लिए वो दुर्गम इलाके और जंगल का इस्तेमाल कर रहे हैं। मुठभेड़ शुरू हुए 100 घंटे से ज्यादा समय बीत चुका है। आतंकियों को मार गिराने की कोशिश में तीन अफसर वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं। इनमें सेना के दो और एक पुलिसकर्मी शामिल हैं। आतंकी भारी मात्रा में हथियारों से लैस हैं।
इनकी संख्या दो-तीन मानी जा रही है। घने जंगल की आड़ का इन्हें फायदा मिल रहा है। ये छुपकर हमला कर रहे हैं। यह नए पैटर्न का संकेत है। आतंकी इसका इस्तेमाल कश्मीर में सिक्योरिटी स्ट्रक्चर को धता बताने के लिए कर रहे हैं। सैनिकों ने सैकड़ों मोटर गोले और रॉकेट दागे हैं। हाईटेक उपकरणों से संदिग्ध आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया है। एडवांस ड्रोन का इस्तेमाल करके विस्फोटक गिराए हैं। शांत अल्पाइन जंगलों में समय-समय पर जोरदार विस्फोट और भारी गोलीबारी की गूंज सुनाई दे रही है।
मंगलवार रात शुरू हुआ था जॉइंट ऑपरेशन
खुफिया इनपुट के आधार पर सेना और पुलिस का संयुक्त अभियान मंगलवार रात शुरू हुआ था। अगले दिन आतंकी ठिकाने तक पहुंचने का प्रयास किया गया। आतंकियों ने कार्रवाई का अनुमान लगा लिया था। उन्होंने सुरक्षा बलों पर गोलीबारी शुरू कर दी। वे एक तरफ घने जंगलों और पहाड़ी तो दूसरी तरफ गहरी खाई के बीच फंस गए थे। सामने से नेतृत्व करते हुए सेना के दो अधिकारी - कर्नल मनप्रीत सिंह और मेजर आशीष धोंचक और पुलिस उपाधीक्षक हिमायूं भट कार्रवाई में मारे गए। दो और सैनिक घायल हो गए। इसके बाद जो हुआ वह ज्यादा चुनौतीपूर्ण था। आतंकियों की ओर से भारी गोलीबारी ने घायलों और कार्रवाई में मारे गए लोगों को निकालना कठिन कर दिया।
आतंकियों को खास तरह की दी गई है ट्रेनिंग
ऐसा लगता है कि आतंकियों को जंगल और ऊंचाई वाले युद्ध में प्रशिक्षित किया गया है। वे लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं। ऐसे जोखिम भरे इलाके में लॉजिस्टिक्स स्थापित करने में काफी समय लग सकता है। लेकिन, इस प्रकार के आतंकवाद से निपटना बेहद मुश्किल है। उनका कहना है कि क्षेत्र के कस्बों और गांवों में तैनात सुरक्षा बल काफी हद तक आतंकियों को सपोर्ट करने वाले स्ट्रक्चर को ध्वस्त करने में समर्थ है। लेकिन, अल्पाइन जंगलों में आतंकवाद हाल के वर्षों में हासिल किए गए लाभ को खत्म कर सकता है। जम्मू प्रांत के पुंछ और राजौरी जिलों में आतंकी गतिविधियों में कुछ ऐसा ही पैटर्न देखने को मिल रहा है।