इतिहास एक मुर्दाघर है, साहित्यकार उसे जीवित करता है: डॉ. देवेंद्र दीपक

इतिहास एक मुर्दाघर है, साहित्यकार उसे जीवित करता है: डॉ. देवेंद्र दीपक

अखिल भारतीय साहित्य परिषद के तत्वावधान में वरिष्ठ साहित्यकार घनश्याम सक्सेना के उपन्यास राजमहिषी मामोला बाई का विमोचन स्वराज भवन में हुआ। स्वागत वक्तव्य राजेन्द्र शर्मा अक्षर ने दिया। उपन्यासकार घनश्याम सक्सेना ने अपने उपन्यास राजमहिषी मामोला बाई के संबंध में कहा कि लोकाख्यानों में प्रचलित मामोला के चरित्र ने मुझे बहुत प्रभावित किया और उन पर कहीं भी साहित्य नहीं मिलता इसीलिए मैंने तय कि मुझे मामोला पर लिखना चाहिए। मुख्य वक्ता अखिल भारतीय साहित्य परिषद की राष्ट्रीय मंत्री डॉ. साधना बलवटे ने कहा कि ये उपन्यास एक ऐसी हिंदू रानी की कहानी है जिसने नवाब की धर्म परिवर्तन की शर्त नहीं मानी, स्वयं की कोख को इसलिए प्रयत्नपूर्वक बांझ कर लिया कि किसी अफगान के रक्त का संक्रमण उसकी कोख में न हो पाए। अपने 50 वर्ष के शासन में समाज हित के कार्य किए और वे लोक आख्यानों में मांजी मामोला के नाम से प्रसिद्ध हैं। 17 वीं 18 वीं सदी के भोपाल की एक ऐसी राजमहिषी को सदियों गुमनामी के अंधेरे में रखा गया। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. देवेंद्र दीपक ने कहा कि इतिहास एक मुर्दा घर है साहित्यकार उसे जीवित करता है। साहित्य का रस ओर इतिहास का तथ्य जब ठीक अनुपात में जुड़ता है तब ऐतिहासिक उपन्यास का सृजन होता है। वरिष्ठ साहित्यकार महेश श्रीवास्तव ने कहा कि मामोला बाई का चरित्र इतना प्रखर था कि उनके बारे में जानबूझकर बाद की बेगमों ने उल्लेख नहीं किया है। आरएनटीयू के कुलाधिपति संतोष चौबे ने कहा कि मामोलाबाई को पढ़ते समय हमें सोचना पड़ता है कि हम अपने शहर को कितना जानते हैं। वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मीनारायण पयोधि ने कहा कि मामोला निडर, निर्भीक, कुशल प्रशासक थीं।