कथक में दिखी ब्रज और मैनपुरी की होली, रिलीज हुआ 250 होली गीतों का संग्रह

कथक में दिखी ब्रज और मैनपुरी की होली, रिलीज हुआ 250 होली गीतों का संग्रह

श्यामला पहाड़ी की खुली वादियां, ढलती हुई फागुनी शाम और प्रेम के गुलाबी रंगों में होली का पैगाम। गीत-संगीत और नृत्य की मन छूती छवियां जब वीथी संकुल सभागार में अठखेलियां करने लगीं तो जैसे वृन्दावन और यमुना का तट कान्हा, राधा और ब्रज के हुरियारों से जीवंत हो उठा। ये खूबसूरत मंजर था ‘होरी हो ब्रजराज’ का। रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय के सहयोग से होली की पूर्व संध्या पर आयोजित यह रंग िबरंगी पेशकश समता, ममता और एकता का पैगाम बनीं। लगभग डेढ़ घंटे के इस प्रदर्शन में ब्रज और मैनपुरी के पारंपरिक होली गीतों को नृत्यांगना क्षमा मालवीय ने कथक नृत्य शैली में नया कलात्मक स्वरूप प्रदान किया। एक दर्जन होली के तरानों में चलो सखी यमुना पे मची आज होरी..., बरजोरी करे रंग डार.., ऐ सखी होली मैं खेलूंगी डट के... तथा बरजोरी करे रंग डार... आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे। इस अवसर पर संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी मनोज श्रीवास्तव उपस्थित रहे।

पारंपरिक होली की धुनों को संजोया

कवि-कथाकार संतोष चौबे की संकल्पना से तैयार हुई इस प्रस्तुति में संगीत संयोजन संतोष कौशिक का और गायन स्वर राजू राव, उमा कोरवार, कैलाश यादव का रहा। प्रकाश परिकल्पना अनूप जोशी बंटी ने की। होलियों की सांस्कृतिक परंपरा और उसके मानवीय संदर्भों को उद्घोषक विनय उपाध्याय ने अपनी रोचक शैली में साझा किया। इस पृष्ठभूमि के साथ ब्रज क्षेत्र के लगभग 250 होली गीतों का उनकी पारंपरिक धुनों के साथ आईसेक्ट स्टूडियो, भोपाल ने संग्रह किया।

ब्रज की होली में राधा-कृष्ण

ब्रज भूमि का संदर्भ आते ही कृष्ण-राधा की लीला छवियां आंखों में तैरने लगती है। इसमें फाग की मस्ती और हंसी-ठिठौली है, थिरकन है तो कहीं कृष्ण भक्ति के रस में डूबोती कानों में घुलती मिठास है।