चंद्रयान-3 की लैंडिंग में महिला वैज्ञानिकों के पास थीं वे जिम्मेदारियां जिनसे मिली मिशन को सफलता
इसरो की रॉकेट वुमन ने निभाई लास्ट मिनट लैंडिंग की जिम्मेदारी
नई दिल्ली। विक्रम लैंडर के चंद्रमा की जमीन पर टच डाउन के कुछ समय पहले इसरो के सभी वैज्ञानिक सेफ लैंडिंग के लिए आशा कर रहे थे। इनमें इसरो की वो महिला वैज्ञानिक भी शामिल थीं जिन्हें इस प्रॉसेस में अहम जिम्मेदारी दी गई थी। इनमें सबसे अहम जिम्मेदारी प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी रॉकेट वूमन के नाम से मशहूर डॉ. रितु कारिधाल पर थी। वह यूपी के लखनऊ की रहने वालीं डॉ. रितु चंद्रयान-3 की मिशन डायरेक्टर थीं। उनके साथ ही लैंडिंग में महत्वपूर्ण रोल निभाया एसएसी और एमआरएसए ने, जिससे चार अन्य महिला वैज्ञानिक संबद्ध हैं। अगर उनसे कोई चूक होती तो लैंडर का क्रैश होना तय था। लैंडर की आंखें उसके कैमरा हैं। इसकी जिम्मेदारी श्वेता किरकिरे और जलश्री देसाई के पास थी। इसी तरह माधवी ठाकरे ने किसी खतरे के डिटेक्शन सेंसर के सॉμटवेयर पर काम किया, जिसने लैंडिंग तय की। वहीं रिंकू अग्रवाल और जयश्री तोलानी को पूरे चंद्रमा को मैप करना था। इस मैपिंग को छोटी-छोटी ग्रिड में बांटना था जिससे लैंडर नीचे उतरने से पहले गड्ढ़ों को जांच सके।
चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट टीम में ग्वालियर के आर्य
ग्वालियर। चंद्रयान के सफल प्रक्षेपण में ग्वालियर के हरिशंकरपुरम के युवा वैज्ञानिक आर्य का भी योगदान है। वो उस टीम का विशेष हिस्सा रहे जो उसके लैंडिंग साइट को फाइनल करने वाली थी। पीपुल्स समाचार से खास बातचीत में आर्य ने बताया कि एक साल पहले इसरो में सेवा के दौरान वे उन चार लोगों की टीम में शामिल हुए जिन्हें सेफ लैंडिंग साइट का काम दिया गया था। लैंडिंग साइट चुनना बड़ी चुनौती थी। इसमें टीम में उनके साथ दो सीनियर और एक टीम मेंबर शामिल थीं। विरासत में मिली राजनीति लेकिन करना कुछ और था: आर्य चंबल संभाग के एक कद्दावर राजनीतिक परिवार से आते हैं। उनके दादाजी राजेन्द्र प्रसाद चौहान मप्र सरकार मे मंत्री भी रहे हैं। वहीं उनके पिता भाजपा के पदाधिकारी हैं। राजनीतिक पृष्ठभूमि के बावजूद आर्यन को खगोल विज्ञान और नए आविष्कार करने की धुन थी, इसलिए उन्होंने ये क्षेत्र चुना।