अपनों पर बन आए तो पता चलता है रक्तदान का महत्व

अपनों पर बन आए तो पता चलता है रक्तदान का महत्व

जबलपुर । रविवार को विश्व रक्तदान दिवस है। रक्तदान का महत्व परिभाषित करना सरल काम नहीं है। इसका महत्व तभी पता चलता है जब किसी अपने को इसकी जरूरत पड़ती है। सामान्य धारणा है कि रक्तदान करने से शरीर में कमजोरी आ जाती है जिससे बहुतेरे लोग रक्तदान से बचते हैं। यह बिलकुल भ्रामक धारणा है जिसे जागरूकता के जरिए कम भी किया जा रहा है। हमारे जिले में ही कम से कम 500 ऐसे थैलेसीमिया पीड़ित मरीज हैं जिनमें बच्चों की संख्या अधिक है को हर महीने रक्त की आवश्यकता पड़ती है। शहर सहित जिले में कई रक्तदान करने वाले स्वयंसेवी इसके लिए अपना रक्त का दान देते हैं। कई बार दुर्घटना होने पर बह जाने वाले रक्त की कमी को पूरा करने के लिए भी मरीजों को रक्त की जरूरत होती है। ऐसे में चिकित्सक मरीज के परिजन से रक्त के बदले रक्त लेते हैं।भले ही मरीज का ब्लड ग्रुप उस ब्लड से मैच न करे मगर रक्त लेकर उसकी जगह वांछित रक्त की आपूर्ति की जाती है। इसके लिए ब्लड बैंकों से भी संपर्क किया जाता है।

सुरक्षित है रक्तदान

यह प्रक्रिया हमेशा योग्य एवं प्रशिक्षित डॉक्टरों द्वारा पूरी की जाती है। इसमें प्रयुक्त नली, सुई आदि को संक्रमणरहित करके ही खून लिया या चढ़ाया जाता है। यह सोचना कि इससे किसी तरह का संक्रमण हो सकता है, गलत है।

ये 10 लोग नहीं कर सकते ब्लड डोनेट

पल्स रेट 60 से 100 के बीच होनी चाहिए।

एचआईवी से संक्रमित लोगों का खून नहीं चढ़ाया जा सकता है।

18 साल से कम आयु नहीं होनी चाहिए।

रक्तदान के बीच 90 दिनों का अंतर होना चाहिए।

जिन लोगों के खून में हिमोग्लोबिन 12.5 से कम होता है वे भी रक्तदान नहीं कर सकते हैं।

नियम के मुताबिक ट्रांसजेंडर, होमोसेक्सुअल आदि लोग भी डॉक्टरी जांच के बिना रक्तदान नहीं कर सकते हैं।

बच्चे की डिलीवरी के बाद महिलाएं कम से कम एक साल तक किसी को अपना खून नहीं दे सकती हैं।

जो लोग इंसुलिन लेते हैं या उन्हें किसी तरह की खून की कोई दिक्कत है तो ऐसे लोग भी खून नहीं दे सकते हैं।

अगर किसी के घर में मलेरिया का रोगी है तो वहां रहने वाले लोग भी तीन महीने तक किसी को अपना खून नहीं दे सकते हैं।

एक साथ 3 जिंदगियां बचाई जा सकती हैं

रक्त किसी दुकान में नहीं मिलता है, इसकी आपूर्ति रक्तदान से ही होती है। यह जानने के बावजूद लोग आज भी रक्तदान से डरते हैं। रक्तदान से एक साथ तीन जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि रक्तदान का कोई नुकसान नहीं है, बल्कि ढेरों फायदे हैं। छह महीने में एक बार खून देना आपकी सेहत के लिए भी बहुत जरूरी है। जो रक्तदान नहीं करते, वे ज्यादा बीमार पड़ते हैं। दुर्घटनाग्रस्त लोगों के अलाव कई ऐसे बीमार होते हैं, जिन्हें खून की जरूरत रहती है। कई बार मानसिक आघात, रक्त की कमी या अन्य किसी सर्जरी में मरीजों को केवल लाल रक्त कणिकाओं आरबीसी की ही आवश्यकता होती है, जो रक्त से अलग होती हैं।

140 बार से अधिक रक्तदान कर चुके हैं, ‘ए-निगेटिव’ ग्रुप के डॉ. जितेंद्र जामदार

शहर में एक से बढ़कर एक रक्तदाता हैं। संभवतय इनमें सबसे ऊपर नाम लिया जाएगा अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ जितेन्द्र जामदार का जिन्होंने अब तक 140 बार से अधिक रक्तदान किया है। आलम यह रहा कि कभी कभी तो पहले मरीज को ब्लड डोनेट करते थे, उसके बाद उसका आॅपरेशन करते थे। उनके इस पुण्य कार्य मेंउनकी धर्मपत्नि डॉ शिरीष जामदार भी सहभागिता करती हैं। वे भी अब तक 35 से अधिक बार रक्तदान कर चुकी हैं। वे ओ निगेटिव ब्लड ग्रुप की हैं। यह भी गौरतलब है कि वर्ष 1973 से लेकर 2012 तक वर्ष में चार बार रक्तदान करने का रिकॉर्ड डॉक्टर जितेंद्र जामदार ने बनाया है। अब वे चंकि एंजियो प्लास्टी करवा चुके हैं और शुगर के पेशेंट भी हैं लिहाजा अब पैथोलॉजी ने उनसे रक्तदान के लिए मना किया हुआ है। डॉ जामदार नगर के सुप्रसिद्ध अस्थि रोग विशेषज्ञ हं, साथ ही विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं,जो समाज सेवा में संलग्न है। वर्तमान में रेडक्रास सोसायटी के उपाध्यक्ष भी हैं और इस कोरोना संकटकाल में भी रक्तदान के लिए लोगों को प्रेरित कर सैकड़ों यूनिट रक्तदान करवाया है,उन्होंने योग मणि ब्लड डोनर डाटा बैंक बनाकर 5000 से भी ज्यादा लोगों का डाटा संधारित किया है जो आवश्यकता के समय लोगों की मदद करते हैं ।

धर्मपत्नी डॉ. शिरीष भी पीछे नहीं

इस पुण्य कार्य में उनका साथ दिया उनकी धर्मपत्नी डॉ. शिरीष जामदार ने। डॉ. शिरीष विशेष रूप से बच्चों को एक्सचेंज ट्रांसयूजन में बहुत मदद करतीं हैं। उनका मानना है कि यह सब पारिवारिक संस्कारों के चलते ही संभव हुआ है।

मेरी आयु 26 साल की है। पहले रक्त देने में डर लगता था मगर एक बार जब मेरे ही परिजन को जरूरत पड़ी और रक्त जुटाने में बहुत दिक्कत हुई तब से खुद रक्तदान करता हूं। मैं अब तक 14 बार रक्तदान कर चुका हूं। मेरा ब्लड ग्रुप ए पॉजीटिव है।- रत्नेश राय, रक्तदाता।


जब किसी अपने पर बन आती है तो रक्तदान का महत्व पता चलता है। जिले में 500 बच्चे थैलेसीमिया के मरीज हैं जिन्हें हर माह रक्त की जरूरत होती है। मेरी उम्र 36 साल है मैं 16 बार रक्तदान कर  चुका हूं। मेरा ब्लड ग्रुप बी पॉजीटिव है।-आनंद सेन, रक्तदाता।
कभी भी किसी को रक्त की जरूरत पड़े हमारा ग्रुप तैयार  रहता है। रक्तदान से बड़ा दान कोई नहीं है। मेरी उम्र 24 साल की है मेरा ब्लड ग्रुप ओ पॉजीटिव है। अब तक 6 बार रक्तदान कर चुका हूं। आप भी रक्तदान करें। सचिन चौधरी, रक्तदाता।