चार महीने से जंजीरों में बंधी है जिंदगी, बाहर आती हैं चीखें

चार महीने से जंजीरों में बंधी है जिंदगी, बाहर आती हैं चीखें

टीकमगढ़। सीलन भरा एक छोटा-सा कमरा। कमरे से उठती दुर्गंध। एक चारपाई और पैरों में बंधी जंजीर। सगरवारा गांव के 35 साल के कालू पाल की जिंदगी की कुछ ऐसी ही कहानी है। कालू पिछले चार महीने से एक कमरे में कैद है। इस कमरे से अगर कुछ बाहर आता है तो सिर्फ उसकी चीखें, वह कभी नहीं निकल पाता। नित्य क्रिया भी कमरे में होती है। कभी गांव भर में आजादी से घूमने-फिरने वाले कालू की यह हालत इसलिए है, क्योंकि गरीबी के कारण उसके मानसिक रोग का इलाज नहीं हो पा रहा हैं। गरीबी में जी रही पत्नी मजदूरी करके अपने 15 साल के बेटे के साथ जीवन चला रही है। ऐसे में लॉक डाउन इस परिवार पर कहर बनकर टूटा। फिलहाल गांव का सरपंच ही इस परिवार के खाने-पीने का इंतजाम कर रहे हैं। परिवार ने अधिकारियों से मदद की गुहार लगाई, लेकिन किसी ने सुध नहीं ली। मामला टीकमगढ़ के मालेरा जनपद में आने वाले सगरवारा गांव का है। कालू की पत्नी जयकुंवर पाल बताती हैं कि उसके पति की पिछले दस साल से तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। इसी बीच कालू की मानसिक स्थिति बिगड़ने लगी। अजीब हरकतें करने लगा। इलाज मिलने पर हालत ठीक हो जाती, जैसे ही इलाज बंद होता, तबीयत फिर बिगड़ जाती। मानसिक स्थिति बिगड़ने पर कालू कभी घर से निकल जाता, तो कभी लोगों पर पत्थर फेंकने लगता, कभी कुएं में कूद जाता। पत्नी जयकुंवर ने बताया कि उसका पति किसी को नुकसान न पहुंचा दे इसलिए उसे घर में ही बांधकर रखना मजबूरी थी।

पति की हालत देख कर आ जाता है रोना

पत्नी का कहना है कि पति को इस तरह बांधना अच्छा नहीं लगता। कभी-कभी तो उन्हें देखकर रोना आ जाता है, लेकिन क्या करें इलाज के लिए पैसे भी नहीं हैं। पहले ग्वालियर में भी इलाज कराया था। जयकुंवर का कहना है कि पति कई बार चीखते हैं, खोल देने की गुजारिश करते हैं, लेकिन क्या करें मजबूरी है।