राग पहाड़ी में सुनाए मीराबाई के पद बंसी वाले को जाने नहीं दूंगी

राग पहाड़ी में सुनाए मीराबाई के पद  बंसी वाले को जाने नहीं  दूंगी

सितार की झंकार, तबले की थाप और कंठ से निकले सुरों का मधुर मिलन होते ही भारत भवन के अंतरंग सभागार में बैठे श्रोता भक्ति के रस में सराबोर हो गए। संतवाणी समारोह के अंतिम दिन पं. बलवंत पुराणिक एवं पं. अजय पोहनकर की भक्ति भाव से भरी स्वरलहरियों उठीं तो पूरे वातावरण में ईश्वरीय श्रद्धा और आस्था के भाव घुल गए।

कार्यक्रम की शुरुआत पं. बलवंत पुराणिक एवं साथियों ने ताल रुपक पर मिश्र मांझ खमाज राग में तुलसीदास रचित ‘श्रीराम चंद्र कृपाल भज मन’ के गायन के साथ की। इसके बाद भजनी ताल पर राग पहाड़ी में मीराबाई के पद ‘बंसीवाले को जाने नहीं दूंगी’ सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसी क्रम में उन्होंने कबीरदास के पद ‘डर लागे और हांसि आए’ को धुमाली ताल पर राग पटदीप में प्रस्तुत किया। इसके बाद भजनी ताल पर राग देस में संत नरहरि के भजन ‘धीरे-धीरे झूलो नंदजी के लाला’ की प्रस्तुति दी।

तत्पश्चात द्रुत भजनी ताल पर राग किरवानी में मीराबाई का भजन ‘राधा तेरी मुरलिया बैरी’ को सुनाया। इसके बाद धुमाली ताल पर राग मांझ खमाज में छितस्वामी के भजन ‘राधिका श्याम सुंदर की प्यारी’ को सुनाया। अंत में भजनी ताल पर राग मालकौंस में मीरा के पद ‘मोहे लागी लगन गुरु चरनन की’ की सुरमयी प्रस्तुति को विराम दिया। प्रस्तुति में अंबरीश गंगराड़े ने सितार, वीरेंद्र कोरे ने बांसुरी एवं मनोज पाटीदार ने तबले पर संगत दी।