तेज आवाज से परमानेंट डैमेज होते हैं कान, लंबे समय तक न लगाएं ईयरफोन

सुबर मॉर्निंग वॉक से लेकर खाना खाने और रात को बेड पर लेटे हुए भी लोगों के कान में ईयरफोन या एयरपॉड्स लगे रहते हैं। हालत यह है कि पूरे समय कई लोग इन्हें अपने कानों या गले में लटकाए रहते हैं जो कि एक फैशन सा बन गया है। फ्रांस में हाल में स्टडी हुई हैं, वहां के नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ हेल्थ एंड मेडिकल इंस्टीट्यूट की रिसर्च से पता चला है कि फ्रांस में चार में से एक व्यक्ति को सुनने में परेशानी हो रही है। रिसर्च के मुताबिक सुनने में समस्या लाइफस्टाइल, सोशल आइसोलेशन, डिप्रेशन और तेज आवाज में म्यूजिक के संपर्क में आने के कारण हो रही है। डॉक्टर्स के मुताबिक हाई इंटेंसिटी म्यूजिक, फिल्म व वेबसीरीज मोबाइल पर सुनने के कारण यह दिक्कतें अब आम होती जा रही हैं। शहर कई मरीज यह शिकायत लेकर आते हैं कि उन्हें कान में सुनने में या आवाज कम आने की परेशानी आ रही है। बातचीत में पता चलता है कि वे एक दिन में 8 घंटे से ज्यादा ईयरफोन यूज कर रहे हैं। डॉक्टर को हर महीने ऐसे 10 से 20 केस मिलते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, दुनिया में लगभग 150 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में सुनने में समस्या महसूस कर रहे हैं। यह संख्या 2050 तक बढ़कर 250 करोड़ होने की संभावना है, इसलिए इसे स्वास्थ्य समस्या के रूप में देखा जा रहा है।
80 डेसिबल से ज्यादा साउंड नहीं सह पाते कान
जरूरत से ज्यादा ईयरफोन का इस्तेमाल सुनने की क्षमता कम कर देता है। लंबे समय तक ईयरफोन से गाने सुनने पर व्यक्ति के कान सुन्न हो सकते हैं। डाक्टर्स की मानें तो ईयरफोन का ज्यादा उपयोग करने से कानों में छन-छन की आवाज आना, चक्कर आना, नींद न आना, सिर और कान में दर्द आदि जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं। हमारे कानों की सुनने की क्षमता सिर्फ 80 डेसीबल होती है, जो धीरे-धीरे 40-50 डेसिबल तक कम हो जाती है, जिससे बहरेपन की शिकायत होने लगती है। इसके साथ ही सिरदर्द और नींद न आना जैसी बीमारियां भी होने लगती हैं। तेज आवाज से ईयर कैनल में दबाव पड़ता है। जिससे चक्कर और सिरदर्द भी महसूस होता है।
तीसरी लेयर कॉकलिया हमेशा के लिए हो जाती है खराब, वैक्स भी चला जाता है पीछे
मैंने पिछले एक साल में देखा है कि युवाओं केकानों में परेशानी आ रही है, वे कम सुनाई देने की शिकायत करने लगे हैं। मोबाइल पर ईयरप्लग लगाकर घंटों संगीत या वेबसीरीज सुनते रहने के कारण यह परेशानी बढ़ रही है। 80 डेसिबल साउंड को यदि एक दिन में 8 घंटे से ज्यादा सुना जाए तो बहरापन बढ़ेगा। कान की तीसरी लेयर कॉकलिया यदि एक बार डैमेज हो गया तो यह कभी रिपेयर नहीं होता यह स्थायी नुकसान होता है जिसके बाद व्यक्ति को हेयररिंग एड ही लगाना होता है। हम आजकल युवाओं की आॅडियोमेट्री टेस्ट कराते हैं जिसमें पता चलता है कि उन्हें कुछ न कुछ हेयरिंग लॉस जरूर हो रहा है। वहीं ईयरफोन या ईयरपॉड लगाने से कान का वैक्स पीछे की तरफ चला जाता है जो कि कान के सिर्फ आउटर लेयर के एक-तिहाई हिस्से में होता है। जब यह हाई इंटेसिटी साउंड की वजह से पीछे चला जाता है तो फिर कान में ब्लॉकिंग होने लगती है। हर महीने ऐसे 10 से 20 मामले आ रहे हैं। -डॉ. नवीन भाटिया, ईएनटी स्पेशलिस्ट
कानों को हाई साउंड से बचाने के उपाय
???? यदि लगातार हाई इंटेंसिटी साउंड सुना है तो फिर बिल्कुल शांति वाली जगह पर रूके और कान को रिपेयर होने दें।
???? 30 मिनट के अंतराल से ब्रेक लें। बहुत लंबे समय तक हेडफोन और ईयरफोन का इस्तेमाल न करें।
???? इनके इस्तेमाल के दौरान साउंड नॉर्मल रखें। खासतौर से हेडफोन किसी के साथ शेयर न करें।
???? हमेशा एक ही कान में ईयरपॉड न लगाएं रखें।
???? गाड़ी चलाते समय इनका इस्तेमाल ध्यान भटकाता है और एक्सीडेंट का जोखिम रहता है।
???? मॉर्निंग वॉक के समय भी इनका इस्तेमाल न करें क्योंकि इस समय संगीत सुनना जरूरी नहीं।
???? ईयरफोन को बहुत ज्यादा कानों के अंदर एडजस्ट करने की कोशिश न करें।
???? ईयरफोन्स हो या हेडफोन हमेशा कंपनी के ही यूज करें। लोकल डिवाइस को अवॉइड करना बेहतर है।