जिले के पेट्रोल-डीजल पम्पों में प्रदूषण नियंत्रण केन्द्र की नहीं हो रही स्थापना

जिले के पेट्रोल-डीजल पम्पों में प्रदूषण नियंत्रण केन्द्र की नहीं हो रही स्थापना

जबलपुर । वाहनों और कारखाने से निकलने वाले धुएं और जहरीली गैसों के उत्सर्जन से शहर का पर्यावरण विषाक्त होता जा रहा है। शहर के कई इलाके प्रदूषण बम बन गए हैं। वाहनों से निकलने वाला धुआं और सड़कों से उड़ने वाली धूल का ऐसा गुबार हवा में घुल रहा है कि सांस लेना मुश्किल होता जा रहा है। शहर में रोज 5 लाख से ज्यादा वाहनों से निकलने वाले धुएं से बच्चों से लेकर बूढ़े तक सांस की बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं। हालांकि इन दिनों कोरोना के कारण कम ही लोग घरों से निकल रहे है। गौरतलब है कि वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2017 में एक आदेश पारित किया गया था,देश के प्रत्येक राज्य के परिवहन विभाग द्वारा उनके राज्य में संचालित प्रत्येक पेट्रोल-डीजल पम्पों पर प्रदूषण नियंत्रण केन्द्र की स्थापना अनिवार्य रुप से सुनिश्चित कराए। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के पालन में जिले में संचालित सभी पेट्रोल-डीजल पम्पों पर प्रदूषण नियंत्रण केन्द्र स्थापित किए जाए। लेकिन जिले में संचालित करीब 148 पेट्रोल पम्प में से सिर्फ एक पम्प भर में प्रदूषण नियंत्रण केन्द्र स्थापित हो पाया है,बाकि सभी पम्प संचालक अभी भी नियमों की उल्लंघन कर रहे है।

जिले में इतने वाहन होते थे संचालित

जिले में औसतन 272 वाहनों का रजिस्ट्रेशन रोज होता रहा है। हालांकि कोरोना के कारण इसमें थोड़ी बहुत गिरावट आई होगी,इनमें सर्वाधिक संख्या बाइक की, फिर कार व अन्य वाहन शामिल हैं। शहर में करीब 100 मेट्रो बसें, 12 हजार आॅटो, चार लाख बाइक, 1200 बसें और पांच हजार ट्रक, हाइवा, डम्पर व ट्रैक्टर आदि संचालित होते थे। जबकि बसें अभी बंद है।

इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा प्रदूषण

गौरतलब है कि जिले में कई साल पुराने कंडम वाहन बेधड़क दौड़ते है। इन वाहनों से निकलने वाला धुआं लोगों की सेहत पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। शहर के इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा दमोहनाका रद्दी चौकी, बल्देवबाग,माढ़ोताल,अधारताल,तीन पत्ती, फुहारा,रानीताल में प्रदूषण हो रहा है

यह हवा है खतरनाक

नाइट्रोजन आॅक्साइड-वाहनों के धुएं में पाई जाती है सल्फरडाई आॅक्साइड-वाहनों और कारखानों के धुएं में पाई जाती है। यह फेफड़ों को अधिक नुकसान पहुंचाती है। कार्बन मोनो आॅक्साइड-वाहनों से निकलने वाले धुएं में पाई जाती है। यह फेफड़ों के लिए सबसे अधिक घातक है। ओजोन-दमे के मरीजों व बच्चों के लिए खतरनाक लेड-वाहनों के धुएं के साथ मेटल इंडस्ट्री से निकलता है।