देश में पहली बार कांग्रेस मुक्त हो सकता है राष्ट्रपति चुनाव

देश में पहली बार कांग्रेस मुक्त हो सकता है राष्ट्रपति चुनाव

भोपाल। देश की आजादी के बाद संभवत: यह पहला मौका होगा, जब कांग्रेस राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी। पार्टी सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस इस बार अपना उम्मीदवार न लड़ाकर दूसरे दल को मौका देना चाहती है। हालांकि, इसकी अभी औपचारिक घोषणा होना बाकी है। दरअसल, राष्ट्रपति चुनाव की तारीख के ऐलान के बाद विपक्ष का साझा उम्मीदवार उतारने की कोशिशें तेज हो गई हैं, जिसकी पहल कांग्रेस ने शुरू कर दी है। यदि ऐसा होता है तो भारतीय राजनीति के इतिहास में ये पहला मौका होगा, जब राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस का उम्मीदवार नहीं होगा।

शरद पवार का नाम चर्चा में

कांग्रेस का उम्मीदवार मैदान में भले नहीं आने वाला हो, लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को एकजुट करने की पहल सोनिया गांधी की तरफ से ही हो रही है। सूत्रों के अनुसार कोरोना संक्रमित होने के बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार समेत विपक्ष के तीन बड़े नेताओं से बातचीत की है। उन्होंने राज्यसभा में पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को विपक्षी दलों के साथ समन्वय की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। इन नई राजनैतिक परिस्थितियों में सियासी हलकों में शरद पवार का नाम भी सामने आ रहा है। दरअसल शरद पवार ऐसे नेता हैं, जिनके नाम पर विपक्ष के अन्य दलों को भी आपत्ति नहीं होगी। पवार के नाम पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को भी तैयार किया जा सकता है।

कांग्रेस कई पार्टियों से कर चुकी विमर्श

अब तक जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार समान विचार वाले राजनीतिक दलों के बीच हो रही चर्चा में सभी का जोर इसी बात पर है कि कैसे उस उम्मीदवार को खोजा जाए, जो सबको मंजूर हो। कांग्रेस नेतृत्व और तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना और लेμट दलों के बीच प्राथमिक तौर पर विचार विमर्श भी हो चुका है। लेकिन इतने से ही काम तो नहीं बनने वाला है। चूंकि, कुछ पार्टियां तो स्पष्ट तौर पर इधर या उधर या न्यूट्रल होने की कोशिश करती हैं और आखिरी वक्त में किसी एक साइड हो जाती हैं। नवीन पटनायक की बीजेडी हो या फिर जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर सीपी, यह दोनों भाजपा के करीब ही नजर आते हैं। पिछली बार तो सपा ने आखिरी वक्त में मीरा कुमार को वोट देने का फैसला किया था, लेकिन इस बार अखिलेश यादव और मायावती का क्या रुख होता है, देखना होगा। सबसे बड़ा सवाल अरविंद केजरीवाल का स्टैंड क्या होगा?