कोविंद के बाद घटी थीं एससी सीटें इसलिए मुर्मू की ताजपोशी से पहले ही आदिवासियों पर फोकस

कोविंद के बाद घटी थीं एससी सीटें इसलिए मुर्मू की ताजपोशी से पहले ही आदिवासियों पर फोकस

भोपाल। एनडीए ने जब से द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने की घोषणा की, उसी दिन से राजनीतिक गलियारों में एक बात जोर देकर कही जा रही थी कि मुर्मू की उम्मीदवारी से भाजपा को कई राज्यों में अनुसूचित जनजाति के वोट मिलेंगे। यह बात तब भी कही गई थी जब 2017 में अनुसूचित जाति के रामनाथ कोविंद को भाजपा ने देश के शीर्ष पद पर बिठाया था। लेकिन, तब शायद भाजपा की तैयारी पूरी नहीं थी। 2017 में कोविंद के राष्ट्रपति बनने के बाद हुए चुनावों में भाजपा को एससी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर फायदा नहीं हुआ। हालांकि, मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने से पहले भाजपा ने पर्दे के पीछे से जोर-शोर से तैयारी की है। आदिवासी वर्ग को जोड़ने के लिए भाजपा ने करीब एक साल में मप्र, झारखंड, राजस्थान, गुजरात समेत देशभर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया। तमाम कल्याणकारी योजनाएं भी एसटी वर्ग के लिए विशेष तौर पर लाई गर्इं और जबरदस्त प्रचार किया जा रहा है।

मोदी-शाह और शिवराज, सबने कसी कमर

मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार भी आदिवासियों को लुभाने के लिए लगातार आयोजन कर रही है। जबलपुर में गृह मंत्री अमित शाह ने सितंबर 2021 में गोंडवाना साम्राज्य के अमर शहीद राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर कार्यक्रम में शामिल होकर जनजातीय अभियान की शुरुआत की थी। इसके बाद 15 नवंबर 2021 को भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन के लोकार्पण के साथ आदिवासियों के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिस्सा लिया था। उसके बाद तेंदूपत्ता संग्राहकों के आयोजन में भी गृह मंत्री शामिल हुए। इसके साथ ही प्रदेश का भाजपा संगठन भी लगातार आदिवासियों के बीच कई आयोजन कर रहा है।

लोकसभा में एससी सीटों पर भाजपा को फायदा

कोविंद को राष्ट्रपति चुने जाने के बाद 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भले ही भाजपा को अनुसूचित जाति की सीटों पर नुकसान हुआ हो, लेकिन 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 47 में से 31 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं कांग्रेस ने सबसे बुरा प्रदर्शन किया और उसके सिर्फ 4 प्रत्याशी ही जीत सके थे। बाकी सीटें क्षेत्रीय पार्टियों के खाते में गई थीं।

आदिवासियों पर भाजपा का फोकस क्यों

40 % से अधिक आबादी: मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश

20 % से ज्यादा : मध्यप्रदेश, झारखंड और ओडिशा

30 % आबादी : मणिपुर, सिक्किम, त्रिपुरा, छग

47 सीटें : लोकसभा की एसटी के लिए आरक्षित

पांच साल पहले हुए चुनावों में आरक्षित सीटों पर भाजपा की स्थिति

???? गुजरात : एससी के लिए आरक्षित 13 में से भाजपा को 7 सीट मिलीं।

???? कर्नाटक : एससी के लिए आरक्षित 36 सीटों में कांग्रेसजेडीएस गठबंधन को 18 और भाजपा को 16 सीट मिलीं।

???? मध्यप्रदेश : 35 सीटें एससी के लिए आरक्षित हैं। 2013 में भाजपा ने 28 जीती थीं, लेकिन कोविंद के राष्ट्रपति बनने के बाद 2018 में हुए चुनावों में 18 पर सिमट गई। इसके उलट कांग्रेस 4 से 17 पर पहुंच गई थी।

???? राजस्थान : कांग्रेस के पास 2013 में एक भी आरक्षित सीट नहीं थी। वह 2018 में 19 आरक्षित सीटों पर जीती। इसके उलट 31 सीटों पर जीतने वाली भाजपा 10 पर सिमट गई।

???? छत्तीसगढ़ : कांग्रेस ने 2013 में सिर्फ 1 रिजर्व सीट जीती थी, जो 2018 में बढ़कर 7 पर पहुंच गई। भाजपा 9 सीटों से 2 पर सिमट गई। इन तीनों राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी, पर मार्च 2020 में मध्यप्रदेश की सत्ता से वह बाहर हो गई थी।