नृत्य नाटिका में दिखाई दो क्रांतिकारी भाइयों की कहानी
शहीद भवन में रविवार को आदिवासी संस्कृति का समागम देखने को मिला। अवसर था, आदिवासी सेवा मंडल द्वारा आयोजित 10वें सांस्कृतिक महोत्सव का। कार्यक्रम में प्रस्तुतियों की शुरुआत मानव सिंह के निर्देशन में शिव स्तुति के साथ हुई। वहीं नृत्य नाटिका ‘1855 की हूल क्रांति सिद्धूका न्हू’ की प्रस्तुति साहिल ग्रुप द्वारा दी गई। सिद्धू और कान्हू दो भाइयों के नेतृत्व में 30 जून 1855 को वर्तमान साहेबगंज जिले के भगनाडीह गांव में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का प्रारंभ किया था। 19 अगस्त 1855 में दोनों भाइयों को अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी।
सोलो कथक और ठेसमा लोक नृत्य किया पेश
कार्यक्रम में सोलो कथक नृत्य, आदिवासी भगवा नृत्य व बच्चों द्वारा छत्तीसगढ़ी करमा नृत्य, आदिवासी ठेमसा लोक नृत्य की परफॉर्मेंस भी दीं गईं। इस दौरान मेधावी छात्र-छात्राओं को सम्मानित भी किया गया।
पहली बार मंच पर देखी सिद्धू और कान्हू की गाथा
आदिवासी कलाकारों ने सांस्कृतिक प्रस्तुति देकर मंत्रमुग्ध कर दिया। नृत्य नाटिका में झारखंड के संथाल विद्रोह में शहीद हुए सिद्धू और कान्हू का जीवन पेश किया गया। इस कार्यक्रम से आदिवासियों के जीवन और उनकी संस्कृति के बारे में जानने का मौका मिला। मैंने पहले कभी इन दोनों भाइयों के बारे में नहीं सुना था। यह जानना रोचक रहा। - शुभम यादव, दर्शक