शुगर फ्री कुटकी चावल और पत्तों में बनी रोटी खास, ज्वेलरी के लगे स्टॉल

शुगर फ्री कुटकी चावल और पत्तों में बनी रोटी खास, ज्वेलरी के लगे स्टॉल

 डिंडौरी में कुटकी चावल की पैदावर होती है। अब कोदो-कुटकी को फिर से पहचान दिलाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। वहां की महिलाओं के स्वयंसहा यता समूह कोदो-कुटकी से बने कई उत्पाद तैयार कर रहे हैं। कुटकी के दानों को चावल के रूप में खाया जाता है और स्थानीय बोली में भगर के चावल के नाम पर इसे उपवास में भी खाया जाता है। कोदो-कुटकी मधुमेह नियंत्रण, गुर्दो और मूत्राशय के लिए लाभकारी है। यह रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के प्रभावों से भी मुक्त है। कोदो-कुटकी हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए भी अच्छा है। इसमें चावल के मुकाबले कैल्शियम भी 12 गुना अधिक होता है। शरीर में आयरन की कमी को भी यह पूरा करता है। इसके उपयोग से कई पौष्टिक तत्वों की पूर्ति होती है। यह कहना था, डिंडौरी से आए पहल कुमार कुशराम का। जनजातीय संग्रहालय के स्थापना दिवस समारोह में उन्होंने डिंडौरी में बनने वाले खाने का स्टॉल लगाया गया है,जिसे लोगों ने पसंद किया। यहां कुटकी चावल की खीर और महिलाइन के पत्तों में रखकर बनने वाली रोटी का भी लोगों ने स्वाद चखा। पहल कुमार ने बताया कि इसमें आटे की रोटी को पत्तों के बीच रखकर तवे पर सेंक जाता है। बांस की सब्जी का भी स्वाद सभी को पसंद आया।

शिल्प मेले में आदिवासी ज्वेलरी

यहां लगे शिल्प मेले में पारंपरिक लकड़ी के सामान व आदिवासी महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली बीड वर्क की ज्वेलरी भी आई है जिसमें इतने रंग हैं कि इसे हर ड्रेस के साथ मैच करके पहना जा सकता है।

जातक आधारित नाट्य की प्रस्तुति

मुकेश भारती द्वारा कठपुतली कला में छोटी-छोटी कथाएं प्रस्तुत की गईं। इस मौके पर शीला त्रिपाठी एवं साथी, भोपाल द्वारा बघेली गायन की प्रस्तुति दी। कलाकारों ने गौरी गणेश मनाऊं (गणेश वंदना)..., उतरत माघ लगत दिन फागुन (जनेउर), आज ब्याहन अइहैं राम (विवाह गीत) की प्रस्तुति दी। हारमोनियम पर मांगीलाल ठाकुर, की-बोर्ड पर पंकेश राव, तबले पर अभय पाल ठाकुर, बांसुरी पर सुमित ठाकुर, सहगायिका में मानसी चौहान और उमा वर्मा ने संगत की। जनजातीय नृत्य गोण्ड सैला की प्रस्तुति रूपसिंह कुशराम एवं साथी द्वारा दी गई। रंगकर्मी धन्नूलाल सिन्हा एवं साथी, भोपाल द्वारा ' तृष्णा ' चंपेय जातक आधारित नाट्य की प्रस्तुति दी गई।