दाल मिलों पर टैक्स की मार, कारोबारियों ने बदल लिया ठिकाना, पहुंच गए महाराष्ट्र

दाल मिलों पर टैक्स की मार, कारोबारियों ने बदल लिया ठिकाना, पहुंच गए महाराष्ट्र

इंदौर। साठ के दशक से इंदौर में दाल मिलें लगना शुरू हुईं। दो दशक में यहां एशिया की सबसे अधिक दाल मिलें हो गईं। चूंकि यह प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र था। यहां झाबुआ-थांदला की तुअर के साथ लोकल दलहन खूब आता, जिसे प्रोसेस कर दाल तैयार की जाती। देशभर में इंदौर से तैयार दालें बिकतीं। यहां गाड़ी खाली कराई बड़ी समस्या है। इसके साथ ही अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक टैक्स, महंगा परिवहन दाल यहां के कारोबारियों को झेलना पड़ता है, जिससे लोकल दालें अन्य राज्यों की अपेक्षा महंगी बिकती है। इससे व्यापार प्रभावित होता है। फलस्वरूप कई मिलें महाराष्ट्र राजस्थान तरफ शिफ्ट हो गईं। पहले दलहनों से दाल घट्टी पर बनाईं जाती थी। बाद में इसके प्लांट लगे। दालों का व्यापार शुरू हुआ। आसपास के क्षेत्रों से चना कांटा, मूंग के साथ तुअर की आवक बढ़ने लगी और कारोबार को गति मिल गई। लगभग दो दशक शहर में एशिया की सबसे अधिक दाल मिलें लगभग 310 थीं। बाहरी प्रतिस्पर्धा कम होने से व्यापार बढ़ता गया।

टैक्स की मार

दलहन प्रोसेस करने वाला मिलर की दिक्कत है... उसे मंडी टैक्स चुकाना पड़ता है। घनश्याम दाल मिल के गुप्ता के मुताबिक हालांकि बीते दिनों इसमें 50 पैसे की कमी की गई है। इसके साथ बांग्लादेश के विस्थापितों के सहयोगार्थ निराश्रित कर आज भी चुकाना पड़ रहा है। स्टॉक की लिमिट होने से मिलर ज्यादा स्टॉक भी नहीं कर पाता। यह दौर दाल मिलों के पीक का था।

गाड़ी खाली कराई...

दाल मिलों पर चना, तुअर, मूंग आती, जिन्हें प्रोसेस कर बाद दालें बनाकर बाहर भेजा जाता था। वरिष्ठ कारोबारी दयालदास सुंदरदास बताते हैं कि आने वाले रॉ मटेरियल से लेकर बाहर भेजे जाने वाले प्रोडक्शन के लिए वाहनों को भरने व खाली कराने वाले हम्माल रखे। इसमें गलत लोगों की इंट्री हो गई। कालांतर में यह विवाद का कारण बना। उद्योग नगर के साजन नगर, प्रकाश नगर व नवलखा क्षेत्र में आज भी गाड़ी खाली कराना समस्या बनी हुई है।

डाउनफाल 21 के दशक से

लगभग पांच दशक दाल मिलों का वर्चस्व रहा। अशोक अग्रवाल के अनुसार इस बीच महाराष्ट्र, गुजरात व राजस्थान तरफ दाल मिलें लगीं। वहां नाममात्र के शुल्क पर जमीन, प्रोडक्शन हाउस के तौर पर सब्सिडी मिली। असर यह हुआ कि दो दशक में करीब 30 दाल मिलें यहां से वहां शिफ्ट हो गईं। आज की स्थिति में 70 से 80 के करीब दाल मिलें ही कार्य कर पा रही हैं। संख्या जरूर 110 के करीब है।

वजह कोई एक नहीं...

ऑल इंडिया दाल मिलर एसो. अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल के अनुसार- मिलें बंद होने की कई वजहें हैं, जैसे- चाहे टैक्स की अधिकता हो, दलहनों की उपलब्धता या फिर कोई अन्य कारण... परेशानी हमारी बढ़ती है। बीते सालों में कई मिलें अन्य राज्यों में इसलिए शिफ्ट हो गईं, वहां उन्हें ज्यादा लाभ मिला।

दाल मिलों पर लगने वाला टैक्स

मंडी टैक्स एक रुपया क्विंटल जीएसटी मशीनरी पर 18 फीसदी, छोटी पैकिंग पर 5 फीसदी, इसके अलावा दाल मिलों को ईएसआई, फैक्ट्री एक्ट आदि का खर्च भी वहन करना होता है। बुकिंग वापसी में ऑर्डर मिलने की संभावना वाले इलाके में 40 रु. क्विंटल तो झाबुआ-थांदला से आने वाले दलहन 50 रु. क्विंटल की पड़तल लगती है।