IPO से जुटाई गई राशि 2022-23 में 50 % से अधिक घटकर 52,116 करोड़

IPO से जुटाई गई राशि 2022-23 में 50 % से अधिक घटकर 52,116 करोड़

मुंबई। आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के जरिये जुटाई गई राशि चालू वित्त वर्ष में 2021-22 के मुकाबले आधे से अधिक घटकर 52,116 करोड़ रुपए रही। वहीं पिछले वित्त वर्ष में आईपीओ से 1,11,547 करोड़ रुपए जुटाए गए थे, जो अबतक का सर्वाधिक आंकड़ा है। प्राइम डाटाबेस के अनुसार केवल 37 कंपनियां 2022-23 में शेयर बाजारों में सूचीबद्ध हुईं। यह 2021- 22 में आए 53 आईपीओ से कहीं कम है। प्राइम डाटाबेस के प्रबंध निदेशक प्रवीण हल्दिया ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में जुटाई गई कुल राशि में 39 प्रतिशत यानी 20,557 करोड़ रुपए अकेले एलआईसी (भारतीय जीवन बीमा निगम) ने जुटाए। अगर इसको हटा दिया जाए तो इस साल आईपीओ के जरिए केवल 31,559 करोड़ रुपए जुट पाते।

छोटे शेयरों को बड़ी कंपनियों के मुकाबले हुआ ज्यादा नुकसान

छोटे शेयरों के लिए वित्त वर्ष 2022-23 बुरा रहा है और इस दौरान स्मॉल कैप शेयर, सेंसेक्स के मुकाबले ज्यादा कमजोरी दर्शाते हुए करीब छह प्रतिशत टूट गए। बाजार विश्लेषकों के अनुसार भारतीय शेयर बाजार के लिए यह एक उथल- पुथल भरा साल था। उच्च ब्याज दर, तेज महंगाई और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे कई नकारात्मक कारकों का असर शेयर बाजारों पर हुआ। उन्होंने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध ने भारतीय शेयर बाजार के लिए पहली तिमाही को कठिन बना दिया था। तेज महंगाई, रूस-यूक्रेन युद्ध और उच्च ब्याज दरों जैसे नकारात्मक कारकों ने छोटे शेयरों से निवेशकों को दूर किया। चालू वित्त वर्ष में सिर्फ एक दिन का कारोबार बचा है, और अब तक बीएसई स्मॉलकैप सूचकांक 1,616.93 अंक या 5.73 प्रतिशत गिर चुका है।

शेयर-मुद्रा बाजार बंद रहे

रामनवमी पर्व के उपलक्ष्य में गुरुवार को अवकाश होने के कारण शेयर और मुद्रा बाजार में कारोबार स्थगित रहा। बीएसई अवकाश कैलेंडर के अनुसार, गुरुवार को रामनवमी त्योहार होने से बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार नहीं हुआ। शुक्रवार को सामान्य कामकाज होगा।

भारत को लाभ मिलेगा

भारत द्वारा महत्वाकांक्षी सुधार एजेंडा को तेजी से लागू करने का लाभ उसे आर्थिक वृद्धि के रूप में मिल सकता है। विश्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में यह महत्वपूर्ण जानकारी दी है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई कि हाल में आर्थिक प्रगति के सभी संकेतक कमजोर रहे हैं, जिसके चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था उपलब्धि शून्य दशक' की आशंका का सामना कर रही है।