बड़ी चुनौती है नर्मदा में गंदे नाले से मिलना रोकना, पूर्व के तीन एसटीपी रहे हैं बेअसर

जबलपुर। महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू का महत्वाकांक्षी और महापौर का चुनाव लड़ते वक्त की गई पहली घोषणा चंद दिनों में पूरी होने वाली है। वे 7 नए एसटीपी प्लांट बनवा रहे हैं इसके साथ ही शहर में 10 जगह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट कार्यरत हो जाएंगे। महापौर की मंशा पर कोई संदेह नहीं मगर क्या यह इतना आसान है? यह सवाल शहरवासियों के मन में लगातार उठ रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि पूर्व में भी शहर में करोड़ों रुपए से बने 3 एसटीपी प्लांट एक्टिव हैं मगर ये कितने कारगर साबित हुए हैं यह सभी जानते हैं।
हर शहर वासी के मन में यह बात तो है कि उनकी धार्मिक आस्था मां नर्मदा से जुड़ी है और इनमें प्रदूषित पानी की गंदगी नहीं मिलनी चाहिए। जहां तक आम नागरिकों की बात है तो पूजन सामग्री,निर्माल्य या अन्य चीजें नर्मदा में उनके द्वारा ही जाती हैं,प्रशासन ने इसे भी बंद कर दिया है। नर्मदा में मूर्ति विसर्जन भी सालों से बंद है,मगर नालों के जरिये गंदगी मिलना बंद नहीं हो पा रही है,इसके लिए गंभीर प्रयास जरूरी हैं,इसमें केवल एसटीपी ही काम नहीं आएंगे। कुछ जनजागरूकता और कुछ प्रशासन के गंभीर उपाय भी करने होंगे।
गौर नदी और सरस्वती घाट में मिलने वाले नाले बड़ी चुनौती
नर्मदा में प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह है गौर नदी,इसके किनारे डेयरियों की गंदगी सीधे नर्मदा में प्रवाहित होती है। इसकी गंदगी नर्मदा में न जाए इसके लिए महापौर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तो लगवा रहे हैं मगर इसका तेज बहाव यह एसटीपी कैसे रोक पाएगा ये समझना होगा। यदि नगर निगम के साथ जिला प्रशासन रणनीति बनाकर गौर किनारे की हर डेयरी में डेयरी संचालकों पर अपने पूर्व आदेश के पालन ही करवा लें जिसमें सभी को एसटीपी लगाने के लिए कहा गया था तो भी राहत मिल सकती है। यही हाल सरस्वती घाट में मिलने वाले नदी नुमा नाले का है जिसमें भेड़ाघाट की हड्डी फैक्ट्री की गंदगी मिलती है,हालाकि यहां पर भी एसटीपी लगा है मगर यह आए दिन बंद रहता है।
ऐसे काम करते हैं एसटीपी
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट किसी भी नाले में बहाव के स्थान पर लगाया जाता है जो कि बहाव को रोक कर इसमें से गंदगी को अलग करता है और दूषित पानी को ट्रीट करता है। साफ पानी आगे बह जाता है और दूषित पानी को पुन: शोधित कर इसे बागवानी या अन्य कामों में लिया जाता है। गंदगी को खाद में परिवर्तित किया जाता है।
गुलौआ तालाब का उदाहरण समझें
तत्कालीन निगमायुक्त ने जब गुलौआ ताल का सौंदर्यीकरण किया तो इसमें मिलने वाले नाले को ही डायवर्ट कर रेलवे लाइन के नीचे से दूसरे नाले में मिला दिया इससे इस तालाब में इस नाले के जरिये आने वाली गंदगी पूरी तरह से रोक दी गई। यह भले ही छोटा प्रयास हो मगर सराहनीय रहा। हर नाले के साथ तो ऐसा नहीं किया जा सकता मगर जिनमें यह काम हो सकता है उनमें किया जाना चाहिए।
नर्मदा में गंदगी मिलना रोकना हर हाल में रोकना है,एसटीपी इसमें बड़ी भूमिका निभाएंगे। इनके संचालन पर भी पूरी नजर रखी जाएगी। नर्मदा हम सभी की आस्था का केन्द्र हैं,इसके लिए नागरिकों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। जगत बहादुर सिंह अन्नू,महापौर।