सूख गई जीवनदायिनी नदी 'कटनी', 91 नालों की गंदगी ने बना दिया दलदल

सूख गई जीवनदायिनी नदी 'कटनी', 91 नालों की गंदगी ने बना दिया दलदल

जबलपुर / कटनी। कभी कटनी नदी को कटनी शहर के लिए जीवनदायिनी माना जाता रहा । शहर की आधी आबादी की प्यास बुझाने के लिए एक समय सप्लाई के अलावा, तीज-त्योहार, पितरों के तर्पण के लिए यहां स्नान कर पूजा- अर्चना करते थे, लेकिन अब इसमें आवारा मवेशियों व शहर भर का गंदा पानी बड़े नाले से प्रवाहित किया जा रहा है। इसलिए बरसात को छोड़कर बाकी 8 से 10 माह तक नदी में सिर्फ गंदगी और दलदल रहता है।

जांच में पाया गया था ‘ए’ ग्रेड पानी

2016-17 में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्यक्रम एनडब्ल्यूएमपी के तहत प्राकृतिक स्रोतों से 6,181 नमूने लिए गए। इसमें कटनी नदी भी शामिल थी। ननि के स्ट्रीम जल प्रदाय के पास लिए गए नमूने व कटनी नदी पुल के पास से लिए गए नमूने में ‘ए’ ग्रेड पानी मिला था। वर्ष 2019 में जिला प्रशासन द्वारा मनरेगा मद में मिले पैसों से कटनी नदी की तस्वीर बदलने की योजना बनाई गई थी, लेकिन प्रचार-प्रसार दिखाकर योजना ही बंद कर दी गई।

भितरीगढ़ पहाड़ से हुआ है नदी का उदगम

उल्लेखनीय है कि कटनी नदी के किनारे बसे होने के कारण ही इस नगर का नाम ही कटनी पड़ा है। नदी का उद्गम स्थल कटनी जिले के स्लीमनाबाद तहसील से 9 किलो मीटर दूर भितरीगढ़ पहाड़ में है। पहाड़ स्थित उद्गम स्थल से होती हुई कटनी शहर से गुजरते हुए विजयराघवगढ़ तहसील अंतर्गत बंजारी के समीप महानदी में जाकर मिलती है। इस नदी की लंबाई लगभग 160 किमी बताई गई है।

नदी किनारे शुरू हुई थी शहर की बसाहट

सैकड़ों वर्ष पूर्व कटनी नदी के किनारे वर्तमान गौतम मोहल्ला एवं जालपा देवी मढ़िया क्षेत्र में लोगों ने घर बनाए और एक छोटा सा टोले नुमा गांव मुडवारा के नाम से अस्तित्व में आया। उस समय लोगों के पीने तथा निस्तार के लिए कटनी नदी व तालाब ही पानी के मुख्य स्रोत थे। प्रतिष्ठित मालगुजार हरलाल जी मसुरहा ने वर्तमान कटनी नदी पुल के पश्चिम दिशा में पक्का घाट एवं मन्दिर का निर्माण कराया। जबकि पुल की पूर्व दिशा में एक अन्य समाज सेवी मोहन लाल जी द्वारा पक्का घाट एवं राहगीरों के रुकने के लिए कमरों का निर्माण कराया गया था। -राजेंद्र सिंह ठाकुर, साहित्यकार एवं पुरातत्व के जानकार, कटनी

एक समय था, जब कटनी नदी के पवित्र जल में स्नान कर लोग पितरों को तृप्त करने के लिए तर्पण करते थे। पूरा शहर इस नदी का पानी पीकर अपनी प्यास बुझाता था। अब पानी के स्थान पर यहां सिर्फ दलदल, गंदगी और सुअर ही देखे जा सकते हैं। -सत्यदर्शन मिश्रा (राम मंदिर वाले), नागरिक