‘एकता में शक्ति’ और ‘विधाता की चिंता’ नाटकों का हुआ मंचन

‘एकता में शक्ति’ और ‘विधाता की चिंता’ नाटकों का हुआ मंचन

शहीद भवन में चल रहे बालमन नाट्य समारोह के अंतिम दिन दो नाटकों को मंचित किया गया। पहला नाटक ‘एकता में शक्ति’ जिसका निर्देशन प्रेम गुप्ता और दूसरा ‘विधाता की चिंता’ का निर्देशन उदयभान यादव ने किया। नाटक में 20 बाल कलाकारों ने प्रस्तुति दी। पंडित विष्णु शर्मा द्वारा बाल मनोभावों को पंचतंत्र में लिखा गया है। नाटक में दिखाया कि एक जंगल से दूसरे जंगल जाने वाली चिड़ियों की यात्रा, जिस जंगल में चिड़ियों का बरेसा था। वह जंगल विरान हो गया है। दाना-पानी सबकुछ खत्म हो गया, तब चिड़ियां दूसरे जंगल में आहार पोषण के लिए सुंदर जंगल में जाती है। उस जंगल की रखवाली सयाना कौआ करता है। इस बीच शिकारी, बहेलिया लकड़हारे आते हैं, बहेलिया चिड़ियों के फंसाने के लिए जाल बिछाता है। यह सब सयाना कौआ देखता है और चिड़ियों को समझाता है कि दाने बिछाकर जाल में फैलाया जा रहा है, तुम सब जाल में फंस जाओगे। चिड़िया कौआ की बात नहीं सुनती है और दाना चुनने के लिए जाल में बिछे दानों की लालच में फंस जाती है। तब रानी चिड़िया कहती है आओ हम सब मिलकर जाल उठाकर उड़ चले और चूहा राजा के पास जाते है। चूहा राजा अपने सब साथियों से मिलकर जाल काट देते है। चिड़ियां आजाद हो जाती है। नाटक विधाता की अदालत में जातिवाद की समस्या को लेकर कुछ लोग पहुंचते हैं और पृथ्वी लोक में जन्म लेने से इंकार कर देते हैं। फिर विधाता उनकी समस्या का समाधान करते है।