चौंसठ योगिनी मरीमाता मंदिर में सौ साल से जल रही अखंड ज्योत, देशभर से आते हैं भक्त
इंदौर। राजकुमार ब्रिज के नीचे स्थित चौंसठ योगिनी मरीमाता मंदिर को सिद्धपीठ माना जाता है। यह माता कालका का ही प्रतिरूप है। सन् 1924 में मंदिर की स्थापना बाबूराम तुकाराम ने की थी। मरीमाता महाराष्ट्रीयन समाज ही नहीं विभिन्न समाजों की कुलदेवी मानी जाती हैं। पहले बलि चढ़ती थी जिसमें पशु का कान छेदकर छोड़ देते थे, लेकिन अब इसकी बजाय भूरा कद्दू मातारानी को अर्पित किया जाता है। पुजारी राजेंद्र आवाले के अनुसार माता की सेवा तीसरी पीढ़ी कर रही है। यह मंदिर रेलवे लाइन से लगा हुआ है जिसके कारण सदैव से इसे हटाने की बातें होती रहीं, लेकिन कभी कोई इसे हटा नहीं सका। यहां नाग देवता है। आषाढ़ माह में यहां से पालकी यात्रा निकाली जाती है, जो मालवा मिल, राणीसती, बंबई की चाल होते हुए मंदिर पर आकर समाप्त होती है। उस समय दही चावल, मैथी आदि के साथ पूरनपोली का भोग लगाते हैं।
हर अमावस-पूनम को चढ़ता है चोला- मरीमाता मंदिर में बीते सौ साल से अखंड ज्योत प्रज्वलित है। हर अमावस्या एवं पूनम के दिन मातारानी को सिंदूर, घी से चोला चढ़ाया जाता है। कई बार चमेली के तेल के मिश्रण से भी चोला चढ़ता है।
राजपरिवार ने दिया महिषासुर का सिर- होलकर राजपरिवार की 64 योगिनी मरीमाता के प्रति अगाध श्रद्धा थी। उन्होंने मंदिर को महिषासुर का सिर भेंट किया, जो मंदिर में लगा हुआ है। यहां मातारानी के चरण कमल भी हैं। वहीं सिंह वाहिनी का सिंह माता की ओर मुख करके विराजित है।
जलाभिषेक के बाद शृंगार- पुजारी राजेंद्र के अनुसार मातारानी श्मशान वासिनी हैं। मंदिर सुबह 6 बजे खुलता है। मातारानी का पवित्र नदियों के जल से जलाभिषेक के बाद शृंगार किया जाता है। इसके बाद चुनरी ओढ़ाई जाती है। मातारानी को सुबह व शाम भक्तों द्वारा लाया गया भोग लगाया जाता है। जिन लोगों को अपनी कुलदेवी का भान नहीं होता वे 64 योगिनी मरीमाता को अपना आराध्य मानते हैं।
नौ दिन दुर्गा सप्तशती-नवरात्र के प्रथम दिन से यहां दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू होता है और नवमी को पूर्णाहुति पर कन्या पादपूजन।
संतान की कामना से आते हैं देशभर से श्रद्धालु-बताया गया कि मातारानी का स्थल सिद्धपीठ है। यहां देशभर से संतान की कामना से श्रद्धालु आते हैं। यहां उनकी गोद भराई होती है।
प्रमुख दिन- मरीमाता का पावन दिन मंगलवार होता है। उस दिन माता को हरे नींबू की माला पहनाते हैं। मान्यता है कि मां के दर्शन मात्र से हर तरह की विपदाएं समाप्त हो जाती हैं।