इंसानी मनोवृत्ति को दिखाते विजयदान देथा के तीन नाटकों का मंचन

इंसानी मनोवृत्ति को दिखाते विजयदान देथा के तीन नाटकों का मंचन

राजस्थानी साहित्यकार विजयदान देथा को लोग प्यार से बिज्जू उपनाम से बुलाते थे, उन्हीं की तीन कहानियों जीवन के रंग बिज्जी के संग में ‘अनेकों हिटलर’, ‘दूजौ कबीर’ और ‘आदमखोर’ का हुआ मंचन। यह कहानियां टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्रों की मनमोहक प्रस्तुतियां थी, जिन्हें उन्होंने एनएसडी के पूर्व निदेशक देवेन्द्र राज अंकुर के मार्गदर्शन व निर्देशन में तैयार किया। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों के साथ मुझे कहानी का रंगमंच करने का अवसर मिला है। पूरी कक्षा तीन समूहों में बांट दी गई और लगभग 14-15 दिनों की प्रक्रिया में इन छात्रों ने इन कहानियों का प्रारूप तैयार किया है। मेरी भूमिका इनको बार-बार अपने ही काम को अस्वीकार करके नया काम रचने और नई से नई बाधाएं अपने लिए ढूंढ निकालने के लिए उत्प्रेरक के रूप में रही है, ताकि ये लोग कहानी के साहित्यिक पक्ष की गहराई को भी समझ जाएं और उसको मंच पर साकार करने के और क्या अलग- अलग तरीके हो सकते हैं, उनको भी तलाश करें। इस मौके पर रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे उपस्थित रहे। नाटक का संयोजन मनोज नायर और डॉ. संगीता जौहरी, अधिष्ठाता मानविकी एवं उदार कला संकाय ने किया।

????अनेकों हिटलर - अनेकों हिटलर में पांच चचेरे भाइयों का चित्रण किया गया है, जो आजादी के बाद निर्वासित हुए लोगों की जमीनों का फायदा उठाते हैं और शहर जाकर ट्रैक्टर खरीदते हैं। लौटते समय रास्ते में एक साइकिल सवार उनसे आगे निकल जाता है। पांचों भाई अपना रौब दिखाने के लिए साइकिल सवार को टक्कर मार देते हैं और उधर साइकिल सवार के साथ उसके सपने, उसकी प्रेमिका के सपने सब खत्म हो जाते हैं।

????दूजौ कबीर - दूजौ कबीर में कहानी में राजकुमारी कबीर के घर जाती है। कलाकृतियां देख कर राजा बहुत प्रभावित होता है और उन्हें खरीदने की इच्छा जाहिर करता है किंतु महज पैसों के बदले अपनी कलाकृतियों का सौदा कबीर के आदर्शों के खिलाफ होता है। जिससे राजा क्रोधित होकर कबीर से दुर्यव्यवहार करता है किंतु कबीर के आदर्श राजकुमारी के हृदय में ऐसी छाप छोड़ते हैं जो आज तक किसी पुरुष ने न छोड़ी हो।

????आदमखोर -एक पुजारी को देवी वरदान देती है कि तू जो भी मांगेगा वो सारी इच्छाएं पूरी होंगी लेकिन वरदान आस-पड़ोसियों को दूना फलेगा। अब इस बात से वो दुखी भी था और खुश भी। उसने देवी के वरदान से जी भर कर अपनी इच्छाएं पूरी की लेकिन वो पड़ोसियों को देखकर जलता भी बहुत। जलन के मारे उसने अपने पड़ोसियों के लिए मौत का कुंआ खोदा जिसमे स्वयं उसकी पत्नी समा गई और वो चाह कर भी अपनी पत्नी को बचा ना सका और अंत में पुजारी के विवेक के आगे देवी का वरदान हार गया।