बस्ती के बच्चे जीत रहे नेशनल अवॉर्ड, सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित जुड़वां भाई अब कॉम्पिटीशंस में ले रहे भाग
I AM BHOPAL । नेशनल मेकिंग लाइफ ब्यूटीफुल डे हर साल 11 जून को मनाया जाता है। यह दिन इसलिए मनाया जाता है, ताकि समाज को ऐसे चेंज मेकर्स की जानकारी मिले जिनकी वजह से दूसरों की जिंदगी बेहतर बनी । शहर में ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने बच्चों की जिंदगी बदलने के लिए और उन्हें अभावों से निकालकर सामान्य जीवन की तरफ ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं पंख मिशन से जुड़े धर्मेंद्र शाहपक्षियों को पिछले 20 साल से मुक्त कराते हुए खुला आकाश दे रहे हैं। इंक्लूसिव एजुकेशन के माध्यम से बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ ा जा रहा है। सेवा कार्यों से जुड़े लोगों ने सफलता की कहानियां बयां की।
नन्हें आर्टिस्ट तैयार कर ताज रंग में जिताया अवॉर्ड
नेहरू नगर की बस्ती में रहने वाला आठ साल का हर्ष केवट, डमरू के नाम से पापुलर है। चार साल पहले यह बच्चा अपनी बहन के साथ थिएटर के लिए आता था। वो छोटा और शर्मीला था तो ध्यान नहीं गया कि वो कुछ रुचि ले रहा है। उसके सिर से पिता का साया भी उठ चुका था। एक दिन उसकी मां का फोन आया कि मेरा बच्चा भी सीखना चाहता है तो मैंने अगले दिन क्लास में उसे कहा कि कुछ बोलो, मैं और सभी आर्टिस्ट हैरत में रह गए क्योंकि इतने दिन की रिहर्सल में उसने एक्सप्रेशंस और वाइस मॉड्यूलेशन के साथ सभी कलाकारों के डायलॉग याद कर लिए थे। साल 2019 में भारत के प्रतिष्ठित ताज रंग महोत्सव में उसे बेस्ट चाइल्ड आर्टिस्ट का अवॉर्ड मिला। चार साल के अंदर उसने कई नाटक किए और हर नाटक में उसे सराहा गया। सिंधु धोलपुरे, रंगकर्मी व सोशल वर्कर
मिशन पंख के जरिए 20 हजार बेजुबानों को कराया आजाद
पिछले 20 साल में 20 हजार तोतों को पिंजरे से मुक्त कराया है। मैंने अपनी पत्नी के साथ पंख मिशन शुरू किया। इस मुहिम को ब्रिटिश वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह मिली है और जल्दी ही लिम्का बुक आॅफ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी इनके मिशन का जुड़ने वाला है। ये बाजारों और बहेलियों के पास से पक्षियों को आजाद कराते हैं, बल्कि घर-घर जाकर भी लोगों के घरों में पिंजरे में रह रहे पक्षियों को मुक्त कराने का प्रयास करते हैं। बकायदा एक सूचना तंत्र की तरह काम करने वाली टीम है, जो इनके मिशन पंख का हिस्सा है। प्रदेश की पूर्व राज्यपाल आनंदी बेन पटेल भी मिशन पंख को सलाम कर चुकी हैं। साथ ही मिशन पंख के पास लगभग 9 लोगों का ऐसा ग्रुप भी मौजूद है जो हर माह पक्षियों के कल्याण और दाने की व्यवस्था के लिए सहयोग राशि देता है। धर्मेंद्र शाह, मिशन पंख
सेरेब्रल पाल्सी और मेंटली रिटार्डेड भाईयों को सामान्य जीवन दिया
सांई नगर बस्ती में सर्वे के दौरान मेंटली रिटार्डेड और सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित 4 साल के दो भाई करण-अर्जुन मिले थे। पिता को नशे की लत थी और मां घर छोÞड़कर जा चुकी थी। इनकी समस्या से इनकी स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। इन बच्चों को मैंने अपने स्कूल में रख लिया क्योंकि घर में कोइ नहीं था जो इन्हें पाल सके। इनके पिता को नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती कराया, जिसमें पांच साल का समय लगा तब जाकर उनकी लत छूटी। अब यह बच्चे 14 साल के होने वाले हैं और एमपी बोर्ड से पढ़ाई कर रहे हैं। मुझे लगता है कि यदि उस दिन मैं इन्हें न मिलती तो आज इनकी स्थिति क्या होती। अब यह बच्चे कॉम्पिटीशंस भाग लेते हैं और अपने कुछ रूटीन काम भी खुद करने लगे हैं। मानसिक चुनौतियों को थैरेपी के जरिए ठीक करने का प्रयास कर रहे हैं। वीवा जोशी, आयाम इंक्लूसिव एजुकेशन स्कूल
टैलेंट देख निजी स्कूल में कराया दाखिला,अब कर रहा थिएटर
मांडवा बस्ती में रहने वाला बच्चा मृगेंद्र नामदेव सरकारी स्कूल में पढ़ाता था। हम इस बस्ती में बच्चों की एजुकेशन के लिए पाठशाला चलाते हैं जिसमें बच्चे स्कूल के बाद आकर पढ़ाई करते हैं। इस बच्चे का टैलेंट देखकर इसे प्राइवेट स्कूल में एडमिशन दिलाया और फीस जमा की। इसका रूझान थिएटर में भी था तो वो भी शुरु कराया। आईएएस एग्जाम में रैंक होल्डर सृष्टि देशमुख को इन बच्चों से मुकालात से लिए बुलाया और क्विज रखा जिसमें सभी सवालों के सही जवाब दिए। यह बच्चा स्कूल में टॉप-5 में शामिल है और मुझे उम्मीद है कि यह बच्चा एक दिन बड़ा मुकाम हासिल करेगा। ताज रंग महोत्सव आगरा में यह अवॉर्ड जीत चुका है। नरेश मोटवानी, निर्माण परिवर्तन
पढ़ाई की व्यवस्था नहीं थी अब फैशन डिजाइनिंग कर रही
सीता यादव मुझे छठवीं कक्षा में लालघाटी पर सर्वे के दौरान मिली। परिवार में छह बच्चे और आय जरिया सिर्फ मां की आमदनी। मां आया का काम करती थी जिसकी वजह से बच्चों की पढ़ाईलिखाई पर ध्यान नहीं दे पा रही थी , लेकिन मन था कि बच्चे पढ़ें। हमनें सीता और उसके भाई-बहन को परवरिश-द म्यूजियम स्कूल में पढ़ने बुलाया। लालघाटी से उसने रेगुलर आना शुरू कर दिया। छठवीं से बारहवीं तक की पूरी पढ़ाई उसे कराई। स्कूल की फीस से लेकर पढ़ाई के खर्चे पूरे किए। वो इस दौरान बहुत ग्रूम हुई, फिर उसकी इच्छा फैशन डिजाइनिंग कोर्स करने की तो उसे महिला पॉलिटेक्निक से फैशन डिजाइनिंग कोर्स कराया। शिबानी घोष, डायरेक्टर, परवरिश स्कूल