शोध: सीमित दायरे में ही रंगों को देख पाता है मनुष्य, शेष भाग में मस्तिष्क भर देता है रंग

शोध: सीमित दायरे में ही रंगों को देख पाता है मनुष्य, शेष भाग में मस्तिष्क भर देता है रंग

हैनोवर। डारमोथ यूनिवर्सिटी द्वारा एमहर्स्ट कॉलेज के साथ मिलकर किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मनुष्य एक सीमित दायरे में ही रंगों को महसूस कर पाता है, जबकि शेष परिदृश्य में मस्तिष्क अपने आप रंग भर देता है। अध्ययन के यह नतीजे नेशनल एकेडमी आॅफ साइंस की प्रोसिडिंग्स में प्रकाशित किए गए हैं। हमारी रंगों के स्पेक्ट्रम को देखने की क्षमता लगभग तीन करोड़ 50 लाख साल पहले विकसित हुई है और यह क्षमता अन्य स्तनधारी जीवों की तुलना में दुनिया को देखने की हमारी दृष्टि को अधिक व्यापक बनाती है। लेकिन न्यूरोसाइंस के अनुसार मनुष्यों में रंगों के बोध का दायरा उससे भी कहीं ज्यादा कम है, जितना रिसर्चर्स पहले सोचते थे।

...तो नहीं समझ पाए परिवर्तन

इस अध्ययन से यह पता चला कि लोगों के रंग बोध का दायरा एक सीमित क्षेत्र तक ही होता है। जब रिसर्चर्स ने देखे जा रहे चित्र के आसपास केपरिदृश्य से रंग हटाकर उसे ब्लैक एंड व्हाइट कर दिया तो अधिकांश लोग इस परिवर्तन को महसूस नहीं कर पाए। महत्वपूर्ण बात ये है कि जब किसी परिदृश्य में एक निश्चित दायरे के बाद 95 प्रतिशत क्षेत्र से रंग को हटा दिया गया तो भी अध्ययन में शामिल एक तिहाई लोग यह परिवर्तन नहीं समझ पाए। जब प्रतिभागियों को वास्तविकता की जानकारी दी गई, तो वे स्तब्ध रह गए।