कर्नाटक की तर्ज पर उठी पेरेंट्स की मांग, केजी से 5वीं तक बंद हो ऑनलाइन क्लासेस

I AM BHOPAL । 30 जून तक स्कूल्स की छुट्टियों के बावजूद शहर में बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस चल रही हैं। वहीं कर्नाटक सरकार ने गुरुवार को एलकेजी से लेकर सातवीं तक के छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं रखने पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया। कर्नाटक के शिक्षा मंत्री एस सुरेश कुमार ने घोषणा कहा कि इसके बारे में एक परिपत्र जारी किया है जिसमें कहा गया है कि स्कूल ऑनलाइन कक्षाओं के नाम पर फीस जमा नहीं करवा सकते। इससे पहले, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस (NIMHANS) द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट में कहा गया था कि इस तरह की वर्चुअल क्लासेस छह साल से कम उम्र के छात्रों के लिए आदर्श नहीं है। भोपाल में भी केजी वन से लेकर बारहवीं तक के स्टूडेंट्स की ऑनलाइन क्लासेस चल रही हैं, जिसे लेकर पेरेंट्स खासा परेशान हैं, क्योंकि केजी वन से लेकर पांचवीं तक के बच्चे लगातार स्क्रीन पर पढ़ाई के लिए कॉन्सन्ट्रेट नहीं पा रहे और अधिकांश घरों में इंटरनेट क्नेटिविटी से लेकर कंप्यूटर या लैपटॉप की व्यवस्था नहीं है। विभिन्न वॉट्सएप ग्रुप पर कर्नाटक के फैसले की सराहना करते मैसेज फॉरवर्ड होते रहे।
कर्नाटक ने बैन की सातवीं तक ऑनलाइन पढ़ाई
भोपाल के पेंरेट्स और डॉक्टर्स ने कहा सही मांग है, क्योंकि हऌड के मुताबिक छोटो बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम की मनाही है। जबकी फीस लेने के लिए स्कूल मई-जून से ही लगा रहे ऑनलाइन क्लास।
कठिन चीजें सिखाना संभव नही
ऑनलाइन क्लास के बाद मुझे तुरंत ऑफिस के लिए निकलना होता है। ऑफिस टाइम के आसापस क्लास होने से बहुत दिक्कत है। एनसीईआरटी ने अल्टरनेटिव कैलेंडर दिया है जिसे फॉलो कर टीचर्स कुछ प्लान कर सकते हैं, लेकिन कोई भी ऐसा नहीं कर रहा। इस समय ऐसा प्लान करें जो कि पेरेंट्स के लिए मुश्किल न बनें। सुरेखा सिंह, (परिवर्तित नाम), बैंकर
हम सिखा पाते तो स्कूल क्यों भेजते
मेरी बेटी के स्कूल में केजी-वन की ऑनलाइन क्लासेस चल रही हैं। बच्चे घर में रेगुलर स्टडी करने में परेशान करते हैं। लाइफ स्किल्स जैसे टास्क बच्चों को दें न कि सिलेबस पूरे करने के। इतने छोटे बच्चों को यदि पेरेंट्स लिखना-पढ़ना सीखा पाते तो स्कूल ही क्यों भेजते हैं। मीठी गोबिंदराम स्कूल प्रिया त्रिवेदी,(परिवर्तित नाम), साइंटिस्ट
इसलिए नहीं हो छोटे बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस
सिलबेस पूरा कराने की जल्दी में बच्चों को ऑनलाइन क्लास का दवाब नहीं दिया जा सकता है। सभी बोर्ड्स ने पहले ही कह दिया है कि 30 फीसदी सिलेबस कम करना है। छोटे बच्चों के केस में ऑनलाइन क्लासेस फिजिकल क्लासेस का रिप्लेसमेंट नहीं हो सकती है। स्कूल चाहें तो रिकॉर्डेड वीडियो पेरेंट्स को भेज सकते हैं। घरों में इंटरनेट या कंप्यूटर न होना। शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के घरों में कंप्यूटर का स्मार्टफोन की व्यवस्था न होना। घर पर स्कूल जैसा माहौल बनाकर बच्चों को पढ़ाना पेरेंट्स के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। घर वर्किंग पेरेंट्स के लिए सुबह ऑफिस जाने से पहले घर के कामकाज के बीच पढ़ाना हो रहा मुश्किल।
अनुकरणीय पहल है, यहां भी लागू हो
कर्नाटक में यह निर्णय एक्सपर्ट पैनल्स की सिफारिश के बाद लिया गया , क्योंकि डब्लूएचओ और निम्हान्स के मुताबिक प्री- प्राइमरी स्टूडेंट्स के लिए ऑनलाइन क्लास ठीक नहीं माना जाता। बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम एडवाइजेबल नहीं है। इससे बच्चों पर अनावश्यक तनाव पड़ता है। बच्चे सिर्फ 20 से 30 मिनट ही कॉन्सन्ट्रेट कर पाते हैं इससे ज्यादा समय वे फोकस नहीं कर पाते। डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, साइकेट्रिस्ट
बच्चों में कंप्यूटर विजन सिंड्रोम का खतरा
पांच साल के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम न हो तो बेहतर है। स्क्रीन से बच्चों की आंखों पर स्ट्रेंन बढ़ता है, क्योंकि यह आंखों के विकास की उम्र है। मसल्स पर तनाव होने पर मायोपिया हो जाता है। यानी माइनस नंबर आने की रिस्क होती है। इसके अलावा ब्लिंकिंग रेट यानी पलक झपकने की स्पीड कम हो जाने से कंप्यूटर विजन सिंड्रोम की समस्या हो जाती है। इसलिए छोटे बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम एडवाइजेबल नहीं है। डॉ. गजेंद्र चावला, आप्थेल्मोलॉजिस्
पढ़ने की आदत बनी रहे इसलिए ऑनलाइन क्लास
केजी वन की भी पढ़ाई शुरू करा दी है, लेकिन हम पहले बच्चों के लिए इंसट्रक्शन वीडियो पेरेंट्स को भेजते हैं। पेरेंट्स उन वीडियो को देखते हैं और फिर रेगुलर पेरेंट्स बच्चों के साथ 40 मिनट ऑनलाइन गूगल मीट के जरिए टीचर्स से कनेक्ट होते हैं। अगर बच्चों को पढ़ाई न कराएं तो दिनभर वे घर पर क्या करेंगे। बच्चों के पास कुछ टास्क रहे इसलिए उनको ऑनलाइन पढ़ाना होता है। पंकज शर्मा,प्रिंसिपल, सागर पब्लिक स्कूल
बच्चों की लर्निंग जारी रहे इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई
बच्चों की लर्निंग जारी रहे इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई कक्षा पहली से करा रहे हैं, लेकिन पहले पेरेंट्स को व्हाट्सऐप पर वीडियो भेज देते हैं। जब वे वीडियो कंटेंट देख लेते हैं, उसके बाद ऑनलाइन आकर बच्चे पढ़ाई करते हैं। बहुत लंबा समय नहीं रखते लेकिन कम से कम एक घंटा तो इसमें लगता ही है, क्योंकि स्कूल पता नहीं कब तक खुले ऐसे में बच्चों की लर्निंग डिस्टर्ब न हो इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई करा रहे हैं। अजयकांत शर्मा, प्रिंसिपल, मीठी गोबिंदराम स्कूल