लॉकडाउन में बढ़ रहे डिप्रेशन के मामले, बढ़ सकते हैं सुसाइड केस

लॉकडाउन में बढ़ रहे डिप्रेशन के मामले, बढ़ सकते हैं सुसाइड केस

भोपाल ।  लॉकडाउन में सुसाइड के बढ़ते मामलों ने नई बहस को जन्म दिया है। अकेलापन, नौकरी जाने का डर, घरेलू झगड़े या अन्य कारणों ने मानसिक रोगी बढ़ हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर चर्चाओं पर गौर करें तो दुनिया भर के मनोचिकित्सक चेतावनी भी दे रहे हैं कि लॉकडाउन में मुश्किलों से मानसिक तकलीफें ज्यादा होने वाली हैं। इसे लेकर रिसर्च भी होने लगी है। डिप्रेशन वाले लोगों की मदद कर रहे काउंसलर्स की मानें तो जो लोग पहले से डिप्रेशन में हैं और डॉक्टर के पास जाने से डर रहे थे, उनमें यह तकलीफ बढ़ी है। कई लोग आगे की समस्याओं से चिंतित व अवसाद से घिर रहे हैं। ऐसे में कह सकते हैं कोरोना का असर कम हाते ही मानसिक रोगियों की संख्या संभवत: बढ़ सकती है। लॉकडाउन में सुस्त अर्थव्यवस्था और अन्य चैलेंज से अवसाद का खुलासा जून में जारी यूनिवर्सिटी आॅफ बाथ (यूके) की स्टडी करती है। ब्रिस्टल के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर हुए शोध में दावा किया है कि लॉकडाउन के बाद भी बच्चे और युवा लंबे समय डिप्रेशन व एंग्जाइटी के शिकार हो सकते हैं। ये असर 9 साल रह सकता है। लंबे समय अकेले रहने वाले लोगों ये समस्या ज्यादा होगी। ब्रिस्टल मेडिकल स्कूल एंड क्लीनिक की साइकोलॉजिस्ट डॉ. मारिया लॉड्स ने स्टडी में कहा कि ‘हमारे विश्लेषण में युवाओं और बच्चों में डिप्रेशन और अकेलेपन का गहरा कनेक्शन है। ऐसे लोगों से भावनात्मक रूप से जुड़ना होगा।’

 ज्यादातर आत्महत्या पारिवारिक कारणों से 

40 प्रतिशत लोगों की मौत रिश्तों की वजह से होती है।

29 प्रतिशत लोगों ने पारिवारिक समस्याओं की वजह से जान दी।

5 प्रतिशत से ज्यादा लोग अपने शादीशुदा जीवन से खुश नहीं थे। 

3 फीसदी लोगों ने प्रेम संबंधों के कारण आत्महत्या की।

17 प्रतिशत आत्महत्याएं बीमारी से तंग होकर की गई ।

3 फीसदी लोगों ने कर्ज से परेशान हो कर जान दी। 

3 फीसदी लोगों ने नशे की आदत की वजह से जीवन समाप्त किया।

 डिप्रेशन में भारत तीसरे नंबर पर :डब्ल्यूएचओ 

20 लोगों में से एक व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार होता है।

3 है डिप्रेशन से पीड़ित लोगों में भारत की रैंक। अमेरिका और चीन ही हैं हमसे आगे। यह आंकड़े चिंता बढ़ाते हैं।

20 करोड़ लोग किसी न किसी मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं। 

15 फीसदी मानसिक समस्या से पीड़ित लोगों में से 15 से लेकर 29 वर्ष के आयु वर्ग के लोग हैं।

45 करोड़ लोग दुनिया में इस वक्त किसी मानसिक बीमारी का शिकार हैं।

 डिप्रेशन से बचाने जरूरी है साइकोलॉजिकल इम्यूनिटी 

कोविड-19 से मुकाबला करते हुए फिजिकल के साथ साइकोलॉजिकल इम्यूनिटी पर भी ध्यान रखना जरूरी है। सक्सेस के लिए कुछ हद तक स्ट्रेस जरूरी है। इसे दो हिस्सों में बांट कर देखे हैं- एक यूस्ट्रेस व दूसरा डिस्ट्रेस। यूस्ट्रेस अर्थात इच्छित तनाव आगे बढ़ने में मदद, वहीं डिस्ट्रेस अर्थात अवांछित तनाव खतरनाक है। हाल के दिनों में यह बढ़ी है। साइकोलॉजिकल इम्यूनिटी की ऐसे में जरूरत है, जोकि दोस्त, फैमिली, आउटलुक, आप्टिमिस्टिक थिंकिंग आदि बढ़ा सकते हैं। बातचीत डिप्रेशन से बचाने जरूरी है साइकोलॉजिकल इम्यूनिटी दिव्या दुबे मिश्रा, साइकोलॉजिस्ट