कोरोना से निपटने हर्ड इम्युनिटी विकसित करना जोखिम भरा, भारत में यह तभी हो सकती है जब 90 करोड़ लोग संक्रमित हों

कोरोना से निपटने हर्ड इम्युनिटी विकसित करना जोखिम भरा, भारत में यह तभी हो सकती है जब 90 करोड़ लोग संक्रमित हों

नई दिल्ली। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद यानी सीएसआईआर के महानिदेशक शेखर मंडे ने कहा कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए हर्ड इम्युनिटी विकसित करना ‘काफी जोखिम भरा’ हो सकता है। उनके मुताबिक हर्ड इम्युनिटी तभी काम करती है, जब आबादी का तकरीबन 60 से 70 फीसदी हिस्सा किसी संक्रामक बीमारी से प्रभावित हुआ हो। ऐसी स्थिति में लोगों में धीरे-धीरे एंटीबॉडी विकसित हो जाती है, क्योंकि वे संक्रमित होकर उबर चुके होते हैं या उनका टीकाकरण किया गया होता है। जब ऐसा होता है, तो उन लोगों में रोम फैलने की आशंका कम होती है, जिनमें एंटीबॉडी विकसित नहीं हुई है। लेकिन भारत में हर्ड इम्युनिटी तभी विकसित हो सकती है, जब कम से कम 80 से 90 करोड़ लोग इससे प्रभावित हो गए हों।

कोई देश नहीं चाहेगा कि संक्रमण फैले

शेखर मंडे ने कहा कि किसी भी देश के लिए यह बहुत बड़ा जोखिम है। कोई भी देश नहीं चाहेगा कि उसके यहां संक्रमण फैले। दुनिया में कई सैद्धांतिक मॉडल बनाए गए है। ऐसे में अपने ही लोगों को संक्रमित कर हर्ड इम्युनिटी विकसित करना सही चुनाव नहीं होगा।

क्या है हर्ड इम्युनिटी

वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर कोई बीमारी जनसंख्या के बड़े हिस्से में फैल जाती है तो बाकी बचे लोग इससे सुरक्षित हो जाते हैं, यानी इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता उस बीमारी से लड़ने में संक्रमित लोगों की मदद करती है। ऐसे लोग जो बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, उनमें बीमारी से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। इम्यूनिटी का मतलब है कि व्यक्ति को संक्रमण हुआ और उसके बाद उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता ने वायरस का मुकाबला करने में सक्षम एंटी- बॉडीज तैयार कर लिया। जैसे-जैसे ज्यादा लोग इम्यून होते जाते हैं, वैसेवै से संक्रमण फैलने का खतरा कम होता जाता है। इससे उन लोगों को भी इनडायरेक्टली सुरक्षा मिल जाती है जो संक्रमित नहीं हुए हैं।