सूखे फाइबर्स को धीरे-धीरे मोड़कर बुना जाता है तुष

सूखे फाइबर्स को धीरे-धीरे मोड़कर बुना जाता है तुष

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा कोरोना काल में जनता को संग्रहालय से आॅनलाइन के माध्यम से जोड़ने नवीन श्रृंखला ‘सप्ताह का प्रादर्श’ शुरू किया गया है। इस महीने के चौथे सप्ताह के प्रादर्श के रूप में कोरापुट, ओडिसा के बोंडो-बोंडा जनजाति के द्वारा पहने जाने वाला वृक्ष-छाल से बना एक कोट, ‘तुष’ को दर्शकों के लिए आॅनलाइन प्रदर्शित किया गया। तुष, वृक्ष-छाल से बना एक कोट है। यह पारंपरिक रूप से ओडिशा के बोंडा जनजाति के पुरुषों द्वारा सर्दियों के मौसम में अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को ढकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। तुष का निर्माण समुदाय के बुजुर्ग सदस्य द्वारा एक पेड़ से छाल के संग्रह से शुरू होता है। छाल को कुल्हाड़ी की मदद से पेड़ से सावधानीपूर्वक अलग किया जाता है। इसके बाद इसे धीरे धीरे कुल्हाड़ी के पृष्ठ भाग से कूटा जाता है और सूरज की रोशनी में सुखाया जाता है। सूखे फाइबर्स को एहतियात से धीरे-धीरे मोड़कर बुना जाता है।