किन्नर भी इंसान हैं, उनको भी होते हैं दुख -तकलीफ

हम भी इंसान हैं हमें भी दुख होते हैं हमारी भी तकलीफें होती हैं। हमें भी भूख लगती है लेकिन ना तो मेरी मदद किसी संस्था ने की और ना ही सरकार ने। जैसे कि मैं इंसान ही नहीं हूं यह कहना है शहर की एक किन्नर (परिवर्तित नाम) सोनाली का, जिन्होंने अपना दुख बताया। सोनाली ने कहा कि लॉकडाउन से पहले तक सब कुछ ठीक था मगर लॉकडाउन के बाद सब कुछ बदल गया। मकान मालिक को किराया देना और खाने पीने की वस्तुओं का इंतजाम करने में मैं पूरी तरह असफल रही। कई दिन भूखे रहना भी पड़ा। समाजसेवी संस्थाएं और सरकार सभी की मदद कर रही थीं मगर मुझ तक कोई मदद नहीं पहुंची। बीच में सोशल मीडिया पर छाबड़ा जी से बात हुई सिर्फ उन्होंने मेरी मदद की दो बार मेरे लिए राशन का इंतजाम किया। सच तो यह है कि मैं अपना दर्द किससे से कहूं किसे बताऊं कि मैं परेशान हूं। हमारा पूरा काम तो मांग कर ही चलता है, अब ना जाने जी भी सकेंगे कि नहीं। कई लोग तो हमसे यह भी कह देते हैं कि आप लोगों के पास तो बहुत पैसा होता है आप लोगों को मदद की क्या जरूरत।