नदियां मैला ढोती रहीं तो आजादी का अमृत महोत्सव नहीं हो सकता, 100 साल पहले हम पानीदार देश थे

नदियां मैला ढोती रहीं तो आजादी का अमृत महोत्सव नहीं हो सकता, 100 साल पहले हम पानीदार देश थे

I am Bhopal हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं लेकिन कौन सी नदी अमृत के समान दिखती है, मुझे लगता है नदियां मैला ढोती रहेंगी तो अमृत महोत्सव नहीं हो सकता। हम दुनिया को सिखाने की बात करते हैं, हम अब उस लायक बचे कहां हैं। ये बात वॉटरमैन राजेंद्र सिंह ने कहीं। वे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट (आईआईएफएम) के 42 वें स्थापना दिवस समारोह में स्टूडेंट्स व फैकल्टी से मुखातिब थे। उन्होंने कहा- हम मंदिरों में पत्थर के भगवान को पूजते हैं, ठीक है, लेकिन पहले तो हम पेड़-पौधों को भी तो पूजते थे। 100 साल पहले हम पानीदार देश थे, जहां का जंगल पानी को धीमा करके उसे रोक लेता था। पंच महाभूतों के मैनेजमेंट से ही हमारे जीवन का मैनेजमेंट होगा। पंच महाभूतों को हेल्दी रखोगे तो मनुष्य स्वत: स्वस्थ रहेगा। राजेंद्र सिंह को 2001 में रेमन मैग्सेसे 2015 में स्कॉटहोम वॉटर पुरस्कार मिल चुका है।

दुनियाभर में आ चुकी है क्लाइमैटिक इमरजेंसी

अब राजस्थान ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में स्थानीय ज्ञान व तकनीक को अपनाकर जलाशयों व भूमिगत जल को रिचार्ज करने के लिए काम रहे राजेंद्र सिंह का कहना है कि क्लाइमैटिक इमरजेंसी आ चुकी है और अफ्रीका, एशिया व मिडिल ईस्ट की उन जगहों से विस्थापन शुरू हो चुका है जहां पानी की किल्लत है और वे लोग यूरोप जा रहे हैं, उन्हें क्लाइमैटिक रिμयूजी कहा जा रहा है, यही विस्थापन तीसरे विश्वयुद्ध की वजह बनेगा जो कि पानी को लेकर होगा। कम्युनिटी साइंस से मैनेजमेंट करना होगा सिर्फ मैनेजमेंट की डिग्री से नहीं। उन्होंने कहा कि साइंस और टेक्नोलॉजी को इंटीग्रेट करना होगा ताकि साइंस से कॉमन सेंस पैदा हो और अंधाधुंध विकास के नाम पर विनाश न हो, क्योंकि पर्यावरण का विनाश होगा तो विस्थापन होगा। जब तक दुनिया पंच महाभूतों के महत्व को नहीं जानेगी मानव सभ्यता को बचाना मुश्किल बना रहेगा। नीर(जल), नारी (प्रकृति) व नदी को सहेजना होगा, जहां नदी खत्म हुई वहां एक सभ्यता पूरी तरह से खत्म हो जाती है।

पीपल का एक पेड़ सहेजता है हजारों लीटर पानी

कोविड महामारी का वायरस पहले से था यह जंगल ही थे जो कि इसे ह्यूमन बॉडी पर अटैक करने से रोके रखते थे। जब पीपल का पेड़ 40 साल का हो जाता है, तब वो एक पेड़ बारिश के 8 हजार लीटर पानी को अपने जड़ों में सहेजने की क्षमता रखता है। पेड़ ही हैं जो पानी को भूमिगत करेंगे लेकिन जब जंगल ही नहीं रहेगा तो पानी की रफ्तार  को धीमा करके कौन रोकेगा। 100 साल पहले हम पानीदार देश थे, जहां का जंगल पानी को धीमा कर उसे रोक लेते थे।

पढ़े-लिखे लोग नदियों को नाला बनाते हैं

आजादी के समय देश के तीन ही राज्यों में बाढ़ आती थी, लेकिन अब 9 राज्यों में बाढ़ आती है। सूखा तीन से चार राज्यों में होता था अब 17 राज्यों में सूखे की स्थिति निर्मित होती है। मुंबई में नदियों का रिकॉर्ड नाले के रूप में दर्ज था, जिसे मैंने ठीक कराया। जहां जितना पढ़ा-लिखा आदमी होता है वहां सबसे ज्यादा प्रदूषण होता है। पढ़े-लिखे ही नदियों को नाला बनाते हैं।