फ्रंट लाइन वॉरियर्स सैंपलिंग के साथ दे रहे इमोशनल सपोर्ट

ढाई माह से घर नहीं गई हूं
मैं प्राइवेट प्रैक्टिशनर डेंटिस्ट हूं, लेकिन मैंने सोचा कि सैंपलिंग के काम के लिए डॉक्टर्स कम पड़ गए तो महामारी से कैसे उबरेंगे। बस इसी फीलिंग के साथ मैंने जेपी हॉस्टिपल के साथ काम करना तय किया। मैंने पीपीई किट पहने हुए एक दिन में 135 सैंपलिंग की। फील्ड में धूप और उमस के बीच इतनी सैंपलिंग करना अचीवमेंट से कम नहीं। हर दिन मैं 20 से 40 सैंपलिंग फील्ड पर जाकर करती हूं। पीपीई किट पहने हुए गर्मी में वोमिट न हो जाए इसलिए सिर्फ हल्का नाश्ता करती हूं और लगातार लगभग पांच घंटे यह किट पहने रहती हूं। मेरे कई साथियों की इस दौरान तबीयत बिगड़ी, क्योंकि हम ठीक तरह से सांस भी नहीं ले पाते। मेरे पति क्षितिज महिंद्रा पेरेंट्स की देखरेख कर रहे हैं। ढाई महीने डीएमआई हॉस्टल में रह रही हूं। खतरे के बावजूद संतुष्टि का अनुभव कर रही हूं।
लॉजिस्टिक मैनेजमेंट... छह सेंटर की जिम्मेदारी
भोपाल में तीन क्वारेंटीन सेंटर और तीन कोविड केयर सेंटर का नोडल आॅफिसर हूं। इस दौरान क्वॉरेंटीन सेंटर बनाने के लिए भोपाल में पिछले पांच साल बंद पड़े एडवांस मेडिकल कॉलेज की बिल्डिंग को क्वॉरेंटीन सेंटर के रूप में विकसित किया। सभी नोडल सेंटल के लॉजिस्टिक व मैनपावर मैनेजमेंट से लेकर सभी जिम्मेदारियां मेरी होती है। हर दिन सभी सेंटर को विजिट करना होता है। 25 साल से काम कर रहा हूं लेकिन कोविड-19 की नई चुनौती ने मैनेजमेंट भी सीखा दिया, तीन महीने से सुबह नौ बजे से लेकर देर रात तक मेरा काम जारी रहता है। मुझे खुशी है कि मैं देश के काम आ पा रहा हूं।
भारतीय सेना से प्ररित हो कर उतरी फील्ड में
पेरेंट्स ने कहा कि अभी सिर्फ 29 साल की हो और क्यों इतना बड़ा रिस्क ले रही हो, लेकिन मैंने तय किया कि सैंपलिंग में मदद करूंगी। सैंपलिंग करने की पूरी प्रोसेस होती है जिसे हर दिन करना होता है। हर दिन टारगेट के हिसाब से सैंपलिंग पीपीई किट में करने जाती हूं। 40 से 50 सैंपल लेती हूं । कई लोग सहयोग नहीं करते तो उन्हें पीपीई किट पहने ही बहुत देर तक समझाना पड़ता है। पिछले एक महीने से घर नहीं गई हूं, डीएमआई हॉस्टल में रह रही हूं। यहां 40 डॉक्टर्स साथ हैं, तो शाम को खूब वॉक करते हैं ताकि अच्छे से ऑक्सीजन मिले। मुझे इंडियन आर्मी से फील्ड में काम करने का मोटिवेशन मिलता है।
कॉन्टेक्ट ट्रैसिंग और सैंपलिंग कर रहा हूं
जीएमसी में कम्युनिटी मेडिसिन में तीन महीने से काम कर रहा हूं। इस दौरान फील्ड पर जाकर पीपीई में सैंपलिंग भी की है। मुझे सीधे कोरोना पेशेंट्स से मिलकर उनकी कॉन्टेक्स ट्रैसिंग भी करना होती है। यह काम आसान नहीं होता क्योंकि कुछ मरीज जानबूझकर जानकारी छुपाते हैं तो कुछ को याद नहीं रहता। इस काम में कम से कम 30 मिनिट से लेकर 45 मिनट तक लग जाते हैं तब जाकर 10 से 15 कॉन्टेक्ट एक व्यक्ति से निकल पाते हैं। पहले जहांगीराबाद की बड़वाली मस्जिद के मरकज केसेस का काम मिला था। इन दिनों घर जाने लगा हूं, क्योंकि पेरेंट्स दूसरे शहर चले गए हैं।
इलाज के अलावा इमोशनल सपोर्ट भी दे रहे
आयुष को कोविड केयर सेंटर बनाया गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि मेरी टीम की मेहतन की वजह से 150 मरीजों को एम्स या हमीदिया रेफर करने की नौबत नहीं आई और वो सही सलामत अपने घर पहुंच गए। हमारे सामने सबसे बड़ा चैलेंज उन लोगों को समझाना होता है कि वे 14 दिन में रिकवर होकर घर चले जाएंगे। कई लोगों के वॉर्ड के कॉल अटेंड करना होते हैं, क्योंकि वो रोने लगते हैं। कई लोग बहुत ज्यादा घबराए हुए होते हैं तो उन्हें संभालना होता है। इलाज के अलावा यह काम भी किसी चुनौती से कम नहीं , लेकिन खुशी है कि मरीज अब ठीक हो कर जा रहे हैं।