बेटी को पढ़ाना चाहता हूं, इसलिए बेचता हूं गलियों में इस तरह चाय

मैं चौबदारपुरा में रहता हूं, लॉकडाउन से पहले एक खाने के होटल पर काम करता था। वहां काम ठीक-ठाक चल रहा था। हमारा परिवार बहुत खुश था। हम रोज कमाते और रोज खाते थे। मगर लॉकडाउन के बाद हमारी परेशानियां बढ़ गई और काम पूरी तरह से बंद होने के बाद पानी के पैसे भी कमा पाना मुश्किल हो गया। मेरी दो बेटियां हैं। बढ़ी बेटी वीरता चौथी कक्षा में पढ़ती है। वह पास के निजी स्कूल में है, मैं उसे डॉक्टर बनाना चाहता हूं। इसलिए रोज रात यह काम करता हूं। इससे पहले जैसा तो नहीं, मगर घर का खर्च और उसकी पढ़ाई का खर्च शायद जुटा सकता हूं, क्योंकि जैसे ही हालात सामान्य होंगे, तुरंत काम नहीं मिलेगा और बेटी के स्कूल में अगर फीस जमा करनी पढ़ी तो कम से कम इन दिनों मैं चाय बेचकर कुछ जमा कर लूंगा, ताकि उसकी पढ़ाई में कोई दिक्कत न हो। यह दर्द है पुराने शहर के धर्मेंद्र नामक युवक की। धर्मेंद्र रोज रात करीब 11 बजे चाय की केतली, डिस्पोजेबल ग्लास और थर्मस लिए एक युवक मोती मस्जिद इलाके में चाय पीने वालों को तलाशता है। इन दिनों इसी तरह चाय बेचकर उसकी रोजी-रोटी चल रही है।