पोती की शादी में वृद्ध मां-बाप को आश्रम से लेकर गया बेटा, रस्म पूरी होने के बाद बोला-वापस जाओ, वृद्ध बोले-हमने तो अब आखिरी उम्मीद भी खो दी

भोपाल। हम आठ साल से इस वद्ध आश्रम (अपना घर) में रह रहे हैं। हमारा बेटा संतोष हमें नहीं रखता। कुछ दिन मंदिर में रहे। उसके बाद यहां आ गए। हमें बहुत उम्मीद थी कि संतोष हमें वापस घर ले जाएगा। एक बार पोती की शादी में संतोष ने बुलाया। उम्मीद थी कि सब ठीक हो जाएगा। संतोष ने शादी की रस्में खत्म होते ही वापस चले जाने को कहा, तब पता चला कि उसे सिर्फ लोगों को दिखाना था कि मां-बाप उसके साथ रहते हैं। हम उसी रात आटो से आए और आखरी उम्मीद भी खो दी। यह कहना है सदाशिव महोरकर (उम्र 90 वर्ष) और उनकी पत्नि शैला महोरकर (उम्र 80 वर्ष) का, जो अब कोलार स्थित ‘अपना घर’ वृद्ध आश्रम में रहते हैं। सदाशिव बीएचईएल से रिटायर्ड अधिकारी हैं। छोटा बेटा करता है सेवा अपना घर आश्रम की संचालिका माधुरी मिश्रा ने बताया सदाशिव और शैला जब आए तो उनको एक बेटे की फिक्र थी। उनका एक और बेटा सुधीर माहोरकर स्पेशल चाइल्ड है, जिसे पास रखना चाहते थे। उसको हमने ढुंढवाया, ताकि इनको सुकून रहे। वह मिला और करीब 6 वर्षों से वह हमारे साथ है। वह अपने मां बाप के साथ अन्य वृद्धों की भी सेवा करता है।
मां को मारकर हाथ तोड़ा और अंजान ट्रेन में बैठाया
अपना घर आश्रम में रहने वाली अंजली श्रीवास्तव (78 वर्ष) जो छोला रोड पर रहती थीं, उन्होंने बताया कि उनकी कोई औलाद नहीं थी। इसलिए उन्होंने सुबोध श्रीवास्तव को गोद लिया और पाला। जब गैस कांड का मुआवजा मिला, तो हमारे सारे पैसे आ गए। कुछ दिनों बाद सुबोध ने जिद कर घर बेच दिया। मुझे मारा, जिससे मेरा हाथ भी टूट गया। मुझसे कहा कि गैस के पैसों के मामले में कहीं साइन करने हमको दूसरे शहर जाना है। इसके बाद मुझे दूसरे शहर ले जाकर ट्रेन में बैठा दिया। और खुद गायब हो गया। ट्रेन चली तो लोगों ने बताया कि यह भोपाल नहीं जाएगी। मैं अगले स्टेशन पर उतर गई और लोगों से पूछते हुए बिना टिकट भोपाल आ गई। यहां मैंने मंदिर के बाहर माला बनाने का काम किया। एक बार बारिश हो रही थी। उस दौरान सर्दी भी बहुत थी। वहां ‘अपना घर’ के लोग आए और मुझे यहां ले आए। तब से मैं यहीं रहती हूं। अब मैं खुश हूं। मगर, जिंदगी ने जो दर्द दिया, वह कभी नहीं भूल पाऊंगी।