पत्रकारिता ने हमेशा बेहतर प्रतिपक्ष की भूमिका निभाई है

I AM BHOPAL । माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित ‘कुलपति संवाद’ आॅनलाइन व्याख्यानमाला में सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु के कुलपति प्रो. सुरेन्द्र दुबे ने कहा कि साहित्य के बिना पत्रकारिता की बात और पत्रकारिता के बिना साहित्य का जिक्र करना बेमानी सा लगता है। पत्रकारिता अपने उद्भव से ही लोक मंगल का भाव लेकर चली है। साहित्य का भी यही भाव हमेशा रहा है। इसीलिए यह दोनों हमेशा साथ-साथ चले हैं। ‘साहित्य और पत्रकारिता’ विषय पर अपने उद्बोधन में प्रो. दुबे ने कहा कि भारत में पत्रकारिता आधुनिकता के साथ आती है। कुछ साहित्यकारों ने पत्रिकाओं का प्रकाशन कर राष्ट्र बोध कराने का प्रयास किया, तो कुछ साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से देश के लोगों को जगाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता अपनी शुरुआत से ही अन्याय, अनीति, अत्याचार और शासन के खिलाफ रही है। यही कारण था कि हिक्की के समाचार पत्र को प्रतिबंधित किया गया, क्योंकि वह अंग्रेज अधिकारियों के भ्रष्टाचार को उजागर करता था। पत्रकारिता हमेशा से ही बेहतर प्रतिपक्ष की भूमिका निभाती आई है।