मानसून पूर्व की तैयारियों में फिसड्डी रहा नगर निगम फिर डूबेगा शहर

जबलपुर । मानसून पूर्व की जाने वाली व्यवस्थाओं में नगर निगम फिसड्डी रहा है। शहर के न तो पूरे नाले साफ हो पाए हैं और न ही नालियां। इस बार एक भी रैंप हटाने की कार्रवाई भी नहीं की गई है जो कॉलोनियों में जलप्लावन का कारण बनती हैं। कवर्ड नालों के अंदर की सिल्ट हटाने की कोई तकनीक नगर निगम के पास नहीं है। इस वर्ष 2 सीवर सक मशीनें आई हैं जो छोटे नालों की सिल्ट या गंदगी तो खींचने में सक्षम हैं मगर बड़े नालों में ये दम तोड़ देती हैं। कुल मिलाकर यह तय माना जा रहा है कि मानसून का पहला ही झला शहर को एक बार फिर पानी से डुबोएगा। शहर में कम से कम आधा सैकड़ा कॉलोनियों और बस्तियां हर साल जलप्लावन की शिकार बनती हैं सो इस बार भी बनेंगी। जहां तक नगर निगम या जिला प्रशासन के आपदा प्रबंधन की बात है तो ये रस्सी और चंद संसाधनों के साथ हर साल की तरह तैयार हैं।
कहां लगे रहे 600 अतिरिक्त श्रमिक
इस बार 4 मई से नाला सफाई अभियान के लिए नगर निगम ने 600 अस्थाई श्रमिकों को रखा था जिन्हें प्रति श्रमिक प्रति दिन 306 रुपए की दर से भुगतान किया जाना बताया जा रहा है। यह अनुमति 15 जून तक की थी जिसे बढ़ाने विभागीय पत्राचार पहले से ही चालू हो गया था। निश्चित है कि इन श्रमिकों को एक महीने के लिए और बढ़ा दिया जाएगा। इस तरह नगर निगम हर दिन 2 लाख रुपए केवल नाला सफाई कार्य में अतिरिक्त रूप से कर रहा है,इसके बावजूद शहर के नालों की स्थिति सबके सामने है।
1.20 करोड़ की 2 सक मशीन
नगर निगम ने सीवर सक मशीनें इस वर्ष खरीदी थीं। पूर्व निगमायुक्त आशीष कुमार ने स्वास्थ्य विभाग के संसाधन बढ़ाने में खासी रुचि ली थी जो शहर के विस्तार केहिसाब से उचित भी है,मगर इनका इस्तेमाल जहां होना चाहिए वहां नहीं हो पा रहा है। शहर के जयादातर नाले कवर्ड किए जा चुके हैं,इनके अंदर की गंदगी निकालना नगर निगम के लिए संभव नहीं है। 1 करोड़ 20 लाख रुपए से ली गई दो सीवर सक मशीनें छोटे-मोटे नाले- नालियों की गंदगी तो सक करने में सक्षम हैं मगर बड़े नालों में ये 5-10 फीट में ही दम तोड़ देती हैं। वैसे भी कवर्ड नालों के अंदर आॅक्सीजन की कमी और जहरीली गैस के चलते अंदर जाकर मेनुअली भी सिल्ट नि कालना संभव नहीं है। लिहाजा इसके लिए अधिकारी तेज बारिश की प्रतीक्षा करते हैं ताकि बारिश के बहाव में ये गंदगी अपने आप बाहर आ जाए और बहकर आगे चली जाए।
5 साल पहले जैसी कार्रवाई नहीं हुई
5 साल पहले नगर निगम ने शहर में रैंप हटाने की जो मेगा कार्रवाई की थी उसकी लोग आज भी तारीफ करते हैं। हालाकि उसके बाद अमला ऐसी हिम्मत नहीं कर पाया और रैंप दोबारा काबिज हो गए। सबसे ज्यादा समस्या कॉलोनी क्षेत्रों में होती है जहां रैंप बने होने के कारण इनके नीचे नालियों की सफाई नहीं हो पाती। मुख्य व उप नालों में भी जगह-जगह लोगों ने इन पर लेंटर तान रखे हैं। जिनकी वजह से सफाई संभव नहीं हो पाती।
फैक्ट फाइल
5 बड़े नाले हैं शहर में
125 उप नाले
1030 छोटे नाले
1.20 करोड़ की 2 सीवर सक मशीनें क्रय कीं
75 करोड़ सालाना है सफाई अमले का बजट
3500 से ऊपर हैं नियमित व ठे सफाई कर्मी