‘मैं हूं ना’ हर किसी की जिंदगी में हो, ताकि डिप्रेशन में आने पर कह सकें मन की बात

भोपाल। बॉलीवुड अदाकार सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के साथ ही सोशल मीडिया पर डिप्रेशन को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो चुका है। मेंटल हेल्थ को लेकर कई बातें सेलेब्स से लेकर मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स ने अपने-अपने प्लेटफॉर्म से शुरू कर दी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्यूएचओ) के मुताबिक डिप्रेशन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 264 मिलियन लोग इससे पीड़ित है। इस बारे में साइकेट्रिस्ट का कहना है कि हर इंसान की जिंदगी में एक ऐसे इंसान का होना जरूरी है, जिससे वो किसी भी समय अपने मन की बात कह सके। मैं हूं ना...वाला किरदार सभी की जिंदगी में होना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह सुसाइड वाले मोमेंट में उस खास से बात कर लेने पर आत्महत्या का विचार छुड़वा सकता है। करण जौहर ने भी इस बात पर खेद जताया कि वे सुशांत के संपर्क में नहीं रहे। दीपिका पादुकोण लंबे समय से मेंटल हेल्थ को लेकर कह रही हैं कि बात कीजिए।
50 फीसदी के पास मन की बात कहने वाले नहीें,इसलिए बनाएं किसी को अपना
मेरे पास आने वाले यंगस्टर्स में से 30 फीसदी को सुसाइडल थॉट्स आते हैं तो हम सबसे पहले यह जानने की कोशिश करते हैं कि इनके पास ऐसा कोई है या नहीं जो वक्त-बेवक्त इन्हें सुन सकें। 50 फीसदी मरीजों के पास ऐसा कोई नही ंहोता , जिससे वो अपने मन की बात कह सकते हैं। मैं हूं ना..का किरदार रखने वाले व्यक्ति से भी मुलाकात करता हूं ताकि उसे समझा सकूं कि वो अपना व्यवहार नॉन-जजमेंटल रखता है या नहीं । यह देखे कि मरीज अपनी दवाएं समय ले रहा है या नहीं। इसके अलावा लगातार उससे संपर्क में रहकर उसकी फीलिंग्स को सुने यह भी समझाना होता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति खुद डिप्रेशन में जाना नहीं चाहता। यह मानसिक बीमारी है, जिसे मरीज और उसके आसपास रहने वाले गलत ढंग से समझते हैं। जब हम किसी से कहते हैं कि डिप्रेशन क्यों हो गया तो इसका जवाब मरीज के पास नहीं होता क्योंकि वो उसने जानबूझकर नहीं किया। यह एक तरह के मेंटल एक्सीडेंट है, जिससे सपोर्ट, काउंसलिंग और मेडिकेशन के जरिए बाहर आया जा सकता है। वर्चुअल दुनिया से अलग कुछ ऐसे लोग अपने अपने आसपास रहने दें जो आपको सपोर्ट करने के लिए मौजूद हों, जिन्हें आप रात में कसी भी समय कॉल करके मन की बात साझा कर सकें। इसे लेकर एक बहुत अच्छी वेबसाइट है ँी’स्रॅ४्रीि.ङ्म१ॅ इसे पढ़कर मेंटल हेल्थ के बारे में सभी लोग जानकारियां हासिल करें।
सुसाइड टेंडेंसी होने पर भी इलाज संभव...
आत्महत्या के 90 फीसदी मामलों में मानसिक कारणों की भूमिका होती है और इसका इलाज संभव है। जब कोई पुरुष डिप्रेशन में होता है तो लोग उसे रोने तक से रोकते हैं। जब ऐसा व्यक्ति सुसाइड कर लेता है तो सभी उसके बारे में जानना चाहते हैं। कोरोना के दौरान अधिकांश लोग घरों में अकेले हैं, ऐसे लोग वीडियो कॉल और चैट के जरिए संपर्क में रहें। अपने आस-पड़ोस के लोगोें से संपर्क में रहे। बात करन में संकोच न करें बल्कि अपने परिवारजनों को हर दिन कॉल करें। मन में अवसाद भरा हुए है तो किसी ऐसे से बात करें जो आपको अच्छे से सुन लें। फैमिली मेंबर्स भी अपने घर के हर सदस्य की बात को ध्यान से सुनें। किसी को कहने से न रोकें। डिप्रेशन में आने वाले को कायर न कहें क्योंकि यह एक बीमारी है जिससे कोई व्यक्ति जूझ रहा है , उसे इलाज दिलाएं।