हैंडशेक नहीं अब सलाम नमस्ते का ट्रेंड, नृत्य, योग और मनोविज्ञान के मुताबिक फीलिंग्स को करता है पॉजिटिव

हैंडशेक नहीं अब सलाम नमस्ते का ट्रेंड, नृत्य, योग और मनोविज्ञान के मुताबिक फीलिंग्स को करता है पॉजिटिव

दुनिया भर में हर साल 25 जून को नेशनल हैंडशेक डे मनाया जाता रहा है, लेकिन इस साल दुनिया में शायद ही कोई शख्स हो, जिसने किसी से हैंडशेक करने की हिम्मत जुटाई होगी। इस बार यह दिन कई मायनों में अलग है। दुनियाभर में इस साल हैंडशेक की जगह भारतीय संस्कृति की अभिवादन मुद्रा नमस्ते ने ले ली है। कोविड-19 के चलते पूरा विश्व अभिवादन के रूप में नमस्ते को न्यू नॉर्मल में अपनाता नजर आ रहा है। नेशनल हैंडशेक डे के मौके पर शहर की भरतनाट्यम नृत्यांगना डॉ. लता सिंह मुंशी ने भारतीय संस्कृति में नमस्ते की मुद्रा के महत्व साझा किए। तो वहीं साइकेट्रिस्ट ने हैंडशेक के मनोवैज्ञानिक असर के बारे में बताया। योगाचार्य ने नमस्ते के जरिए बनने वाली मुद्रा की जानकारी दी। 2005 से मनाया जा रहा था हैंडशेक डे: मिरयम रोडी ने नेशनल हैंडशेक डे की शुरुआत की थी। साल 2005 से यह दिन मनाया जा रहा है। लेकिन इस साल शायद ही किसी देश के नागरिक हैंडशेक करें।

ट्रंप सहित कई नामचीन हस्तियों ने अपनाया नमस्ते

दुनिया भर की नामी-गिरानी हस्तियां नमस्ते को अपना रही हैं, क्योंकि यह सोशल डिस्टेंसिंग के लिए अहम है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, प्रिंस चार्ल्स, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन , इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी कई मौकों पर नमस्ते करते देखे जा रहे हैं।

न्यू नॉर्मल में नमस्ते के साथ हो जाएंगे सहज

हैंडशेक नॉन वर्बल कम्युनिकेशन का माध्यम होते हैं। स्पर्श हमारे ब्रेन के न्यूरोट्रांसमीटर में चेंजेस लाता हैं। किसी का हाथ दिल से मिलाने पर ऑक्सीटोसिन व सिरोटोटिन, डोपामिन हार्मोन रिलीज होता है। डर व दुख कम होते हैं व हीलिंग का काम करता है। लेकिन बदलते हुए परिदृश्य ने नॉन- वर्बल कम्युनिकेशन बॉडी लैंग्वेज और आंखों की भाषा से हो रहा है। चेहरे के भाव भी मास्क की वजह से नहीं देख पा रहे। मनोचिकित्सा में टच का महत्व था लेकिन अब नई स्थितियों के साथ जीना सीखना होगा। पूरी दुनिया की तरह नमस्ते को अपनाना होगा। सलाम नमस्ते अब नया ट्रेंड होगा। नई नियमों के हिसाब से हम इसके आदि बनते चले जाएंगे।