बच्चों को बचाने पैरेंटस ने भी बनाई मोबाइल से दूरी

भोपाल । घर बच्चों की प्रथम पाठशाला होती है। हालांकि, आज बच्चा अधिक समय बाहर होता है। लेकिन लॉकडाउन ने इस थ्योरी को भी बदल दिया है। तीन माह से बच्चों के घर में लॉक होने से मोबाइल की लत के मामले तेजी से बढ़े हैं। बाल कल्याण समिति की काउंसलर सरिता राजानी के मुताबिक तीन माह में बच्चों के 8 केस आए। वे यही कहते हैं कि मम्मी-पापा दिनभर मोबाइल में व्यस्त रहते हैं। ऐसे में माता-पिता भी बच्चों को बचाने मोबाइल से दूरी बना रहे हैं।
बच्चे भी रखते हैं उम्मीद
बच्चों को लगता है कि घर में सभी को हर बात की छूट है, बंदिशें केवल उन्हीं के ऊपर हैं। यही वजह है कि बच्चों को बचाने माता-पिता ने भी खुद के लिए कुछ दायरे तय किए हैं और इससे बहुत अच्छे रिजल्ट सामने आ रहे हैं। सरिता राजानी, काउंसलर
इमरजेंसी कॉल में ही उपयोग बैरागढ़ के 12 वर्षीय बच्चे को ऐसी लत
लगी कि मोबाइल छीनने पर बालकनी से कूदने को तैयार हो गया था। बच्चे की दो माह काउंसलिंग व सलाह पर परिवार ने नियम बनाया कि रात दस बजे के बाद मोबाइल का इमरजेंसी कॉल के अलावा प्रयोग बंद रहेगा। परिवार के सदस्यों ने काउंसलर को बताया कि लत छूटने के साथ ही पूरे परिवार में बॉडिंग बढ़ी है।
किशोर की छूटी पोर्न साइट की लत
ईंटखेड़ी के 17 वर्षीय किशोर को दोस्तों से ऐसी लत लगी कि लॉकडाउन में माता-पिता की मौजूदगी में पोर्न ना देख पाने से आक्रामक होने लगा। जब पकड़ा गया तो कहा कि वह बड़ा हो गया है। माता-पिता भी वेबसीरीज देखते हैं। 3 माह काउंसलिंग में किशोर को दुष्प्रभाव के बारे में बताया। अब वह इस लत से बाहर आ चुका है और परिवार में इंटरनेट बंद है।
गुरुद्वारे पर सेवा के दौरान मोबाइल नहीं रखने का सकारात्मक असर
पंजाबी परिवार की टीनएज गर्ल पर मोबाइल का नशा ऐसे हावी था कि खाना-पीना तक भूल जाती थी। काउंसलर से लगातार ढाई माह बातचीत में यह समझ में आया कि बच्ची को आध्यात्म और सेवाभाव में दिलचस्पी है। उसे रोज दो घंटे गुरुद्वारे में सेवा में लगाया। परिवार के सदस्य भी बिना मोबाइल के साथ थे। अब बच्ची में काफी परिवर्तन है।