प्रहलाद पटेल राजनैतिक पथ पर चलता एक साधक

प्रहलाद पटेल  राजनैतिक पथ पर चलता एक साधक

जबलपुर। वे मीठा नहीं बोलते, सच बोलते हं। काम हो ही जाएगा, ऐसी झूठी दिलासा भी नहीं देते। जितना जायज होगा, उतना फौरन कर देते हैं। लंबे चौड़े वायदे भी नहीं करते। जो काम नहीं हो सकता उसके लिए फौरन मना कर देंगे। झूठी तारीखें नहीं देगें। बहुत औपचारिक होकर आप से नहीं मिलेंगे लेकिन उनकी आत्मीयता आपको बांध लेगी। एक राजनैतिक मिठास उनमें नहीं है लेकिन मां के हाथ के भोजन की तरह तृप्त कर देते हैं। उनसे मिलकर आपको नहीं लगेगा कि किसी केंद्रीय मंत्री से मिलकर आए हैं लेकिन किसी साधू से मिलने के बाद जो आश्वस्ती मिलती है, उसका अहसास होगा। लगता है जितना सही होगा उतना काम होजाएगा। उनके व्यक्तित्व में किसी नेता की तरह झूठी चटक या फिर बनावटी चमकीलापन नहीं है। एक खरे व्यक्ति की तरह तेज है। यहां जिक्र हो रहा है केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रहलाद सिंह पटेल का। श्री पटैल एक राजनैतिक पथ पर चलते हैं लेकिन एक साधक की तरह किसी धंधेबाज की तरह उनका व्यहार लचीला नहीं होता। 32 साल की पत्रकारिता में जो भी नेता देखे, वे ऐसे नहीं थे। श्री पटैल का कहना है कि नेता को हमेशा इसांफ करना होता है। जो इंसाफ नहीं कर सकता, उसे नेता नहीं बनना चाहिए। बात सिर्फ चुनाव लड़ने की और जीतने की नहीं है। मंत्री या फिर मुख्यमंत्री की भी नहीं है। नेता को निष्पक्ष होना ही चाहिए। दो बार की नमर्दा परिक्रमा ने उन्हें व्यवहारिक बनाया है। पिछले दिनों पर्यटन के एक अफसर ने उनके कामकाज को लेकर कहा था कि आपकी धातू ही अलग है। आप न थकते हैं न आलस्य करते हैं। उन्होंने नमर्दा परिक्रमा राजनैतिक जीवन में पताका फहराने के बाद की लेकिन साधू की तरह। बिना चप्पल के। बिना किसी रसूख के। भिक्षा मांग कर भोजन किया, जहां जगह मिली वहीं सो गए। कई चीजों से उन्हें एलर्जी है। वे नशे के विरोधी है। उनका मानना है कि हमने जो भी किया, वो अगली पीड़ी में दिखाई पड़ता है। उनका छह फुट चार इंच का बेटा जब झुककर किसी भी साधारण व्यक्ति के पैर छूता है तो लगता है कि भगवान ने उन्हें अच्छे कर्मों का सर्टिफिकेट दे ही दिया है।