करोड़ों के पब्लिक टायलेट घोटाले में प्रशासक स्वीकृति पर उठे सवाल, शासन से जांच की हो रही मांग
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ग्वालियर। प्रदेश में कांग्रेस सरकार रहने के दौरान निगम में 2.45 करोड़ के सार्वजनिक टायलेट (पीटी) निर्माण घोटाले खुलने के बाद भाजपा सरकार में भी आरोपों में घिरे दागी हावी हो गए है। यहीं कारण है कि निगमायुक्त संदीप माकिन द्वारा 7 दिन के कारण बताओ नोटिस का जबाव 14 दिन में नहीं दिया गया है, तो प्रशासक एमबी ओझा द्वारा व्यय स्वीकृति देने के बाद कई सवाल खड़े हो गए है। साथ ही मामले में प्रदेश शासन द्वारा जांच की मांग होने लगी है। नगर निगम के जिम्मेदारों द्वारा 25 जुलाई 2019 को 2.45 करोड़ के 16 सार्वजनिक शौचालय (पीटी) व 3.84 करोड़ के 29 सीटी (कम्यूनिटी टायलेट) निर्माण हेतु निगम परिषद/एमआईसी के अस्तिव में होने के बाद भी बिना स्वीकृति लिए टेंडर लगवाए गए थे। साथ ही मिलीभगत के चलते बिना बजट व व्यय स्वीकृत लिए 31 अगस्त 2019 को ठेकेदारी फर्म (सुलभ इंटरनेशनल) से अनुबंध कर लाभ देने के लिए परर्फोमेंस गारंटी (बीजी) जमा नही करवाई गई और इतनी अनदेखी होने के बाद भी कार्य के भुगतान हेतु 24 दिसंबर 2019 को एक करोड़ राशि का पहला बिल लेखा शाखा में पहुंचावा दिया। जहां घोटाले से ताल मिला रही आरएडी शाखा ने सारे गड़बड़झाले को अनदेखी कर भुगतान के लिए पारित कर दिया। इसके बाद 16 पीटी निर्माण की फाइल लेखा शाखा में पहुंचने पर स्वच्छ भारत मिशन की जगह निगम शौचालय व मूत्रालय के केवल एक करोड़ राशि वाले हेड (खाते) से ठेकेदारी फर्म को 30 जनवरी 2020 को 35 लाख का भुगतान जाीर किया गया।
फाइल पर प्रशासक की स्वीकृति पर उठ रहे सवाल
घोटाले में अपने हाथ फसने के चलते निगम में शुरू हुई लीपापोती के चलते प्रशासक एमबी ओझा से जिम्मेदार अफसरों ने कार्योत्तर स्वीकृति लेकर 14 अप्रैल 2020 को संकल्प 23 करवा लिया था। लेकिन उसमें प्रशासक ने दोषियों पर सख्त कार्यवाही की हिदायत पर निगमायुक्त ने सभी को नोटिस दिए। सूत्रों की मानें तो प्रशासक द्वारा भुगतान महीनों बाद फाइल पर कार्योत्तर व्यय स्वीकृति सवालों में आ गई है। भुगतान होने के बाद भी प्रशासक द्वारा अनदेखी की फाइल को स्वीकृति देना गलत है। इस मामले में शासन स्तर पर जांच होना चाहिए, क्योंकि प्रशासक भी इस मामले में दोषी हो गए है। कृष्णराव दीक्षित, पूर्व नेता प्रतिपक्ष, नगर निगम निगम कांग्रेस शासन काल में पूरी तरह से दबाव बनाकर निगम में काम किए गए है। कर्मचारियों के वेतन तक के लाले है। पूरे कार्यकाल व अधिकरियों की भूमिका की जांच होना चाहिए।
निगमायुक्त ने इन्हें जारी किए थे नोटिस
2.45 करोड़ के पब्लिक टायलेट घोटाला सामने आने पर निगमायुक्त ने 17 जून 2020 को अपर आयुक्त (वित्त) देवेन्द्र पालिया, अधीक्षण यंत्री प्रदीप चतुर्वेदी, सीसीओ प्रेम पचौरी, सहायक यंत्री सतेन्द्र यादव, उपयंत्री राजेश परिहार व एक र्क्लक को अपनी अपनी जिम्मेदारी में अनदेखी के चलते कारण बताओ नोटिस जारी किए गए थे। जिसमें 7 दिवस के अंदर नोटिस का जबाव देने के लिए निर्धारित की गई थी और चेताया गया था कि नियत समयावधि गुजरने व उत्तर ने होने की स्थिति में नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी। लेकिन 14 दिन निकलने के बाद भी दागी अफसरो ने अभी तक जबाव नहीं दिया है।