कोरोना काल में हुआ में तकनीक की ताकत का असल अहसास

भोपाल। लॉकडाउन के बावजूद देश विचलित हुए बिना आगे बढ़ता रह सका तो उसमें तकनीक की अहम भूमिका रही है। कोरोनावायरस का संकट ऐसे समय पर आया जब हमारे पास जरूरी तकनीकी शक्ति मौजूद थी और देश ने इसका प्रयोग इस तरह किया कि हमारा प्रशासनिक, चिकित्सकीय, बैंकिंग, शैक्षणिक आदि तंत्र चलते रहे। माइक्रोसॉट इंडिया के निदेशक (स्थानीयकरण तथा सुगम्यता) बालेंदु शर्मा दाधीच ने एमपी पोस्ट द्वारा सकारात्मक डिजिटल जर्नलिज्म के दो दशक के अवसर पर रविवार को विशेष सीरीज के फेसबुक लाइव' वर्चुअली टुगेदर इन पोस्ट कोविड वर्ल्ड '' विषय पर संवाद के दौरान यह बात कही । दाधीच ने कोविड-पश्चात के दौर में तकनीक के विभिन्न आयामों पर चर्चा की, जिनमें सोशल, क्लाउड, एनालिटिक्स, मोबाइल, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, संचार, कोलेबरेशन, ई-गवरनेंस, ई- कॉमर्स, ई-शिक्षा आदि प्रमुख थे। उन्होंने कहा कि आज अगर कोरोनावायरस का टीका तथा दवा निर्मित करने में सुखद संकेत मिल रहे हैं तो इनके पीछे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एनालिटिक्स और क्लाउड कंप्यूटिंग की भी भूमिका है जिन्होंने इन प्रक्रियाओं को ज्यादा तेज और प्रभावी बना दिया। कोरोना काल ने लोगों को टेक्नोलॉजी के सहारे न केवल वर्चुअली करीब ला दिया है साथ ही हेल्थ प्रबंधन को मजबूती दी है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में दो चीजें प्रासंगिक हो गई हैं-सोशल डिस्टेंसिंग और सोशल मेसेजिंग। दोनों का असर हमारे घर, दμतर, कारोबार, सामाजिक जीवन, शिक्षा, साहित्य-संस्कृति पर पड़ा है. ज्यादातर लोग अनायास ही इनके इतने निकट आ गए। सोशल मेसेजिंग को चैट के रूप में देखने की बजाय डिजिटल संपर्क के प्रतीक के रूप में देखा जा सकता है, जो व्यापक अर्थों में बहुत सारी दूसरी घटनाओं को समेट लेता है, जैसे- आनलाइन कोलेबोरेशन, डिजिटल मनोरंजन, आभासी बैठकें, डिजिटल कारोबार और आभासी शिक्षा आदि।
तकनीक की सीमा भी सामने आ गयी : छोटे कामगारों के पास स्मार्टफोन नहीं, जिन पर एंड्रोइड एप नहीं चलते। लाखों छात्र लॉकडाउन में आनलाइन शिक्षा के दायरे से बाहर रह गये, जिनके पास स्मार्टफोन या पर्सनल कंप्यूटर नहीं है. ऐसे बहुत से लोग सहकर्म के दायरे से बाहर रह गये, जिनके घर पर कंप्यूटर नहीं है।