नियम कानूनों की बंदिशों के बावजूद प्रदेश में साढे 7 लाख बच्चे मजदूरी करने को मजबूर

नियम  कानूनों की बंदिशों के बावजूद प्रदेश में साढे 7 लाख बच्चे मजदूरी करने को मजबूर

जबलपुर । वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में 7.02 लाख बाल श्रमिक है। जबकि प्रशासनिक प्रतिवेदन लेबर डिपॉर्टमेंट की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेशभर में साढे 7 लाख बाल श्रमिक ऐसे है जो 5 से 14 वर्ष की आयु के है। ये चाय की दुकान, होटल से लेकर बाइक सर्विस सेंटर में बड़ी संख्या में बाल श्रमिक काम कर रहे हैं। लेकिन, श्रम विभाग को चार साल में एक भी बाल श्रमिक नजर नहीं आया। विभागीय पत्राचार इस बात का खुलासा कर रहा है। इसके विपरीत पिछले वर्ष की महाकोशल कॉलेज के प्रोफेसर व रिसर्च स्कॉलर की 20 सदस्यीय टीम के सर्वे में जबलपुर जिले में 1591 बाल श्रमिकों का पता चला है। सर्वे के अनुसार ये बच्चे जिले के 25 स्लम एरिया में 962 बीपीएल परिवारों के हैं। बाल श्रम करते पाए गए ये 6 से 14 साल तक के बच्चे कढ़ाई, हैंडवर्क, वैल्डिंग, आॅटोमोबाइल सर्विस सेंटर, ईंट- गारा, चाय की दुकान, होटलों व बीड़ी कारखानों में कार्यरत हैं। राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना के तहत हुए सर्वे की रिपोर्ट सामने आने के बाद से ही प्रशासनिक महकमे में हड़कम्प मचा हुआ था। जबकि दिसम्बर-जनवरी में मध्यप्रदेश विधानसभा सत्र के दौरान प्रदेश भर में बाल श्रमिकों की संख्या 148 बताई गई है। जो बहुत ही चौकानें वाली संख्या है, क्योंकि अगर बाल श्रमिकों का सर्वे कोई एक जिले में भी देखा जाए तो इससे कई गुना ज्यादा हो सकती है। पीपुल्स समाचार की टीम ने भी लेबर डिपार्टमेंट प्रशासनिक प्रतिवेदन के अनुसार विश्व बाल श्रमिक निषेध दिवस पर कुछ आंकड़े सामने रखे है।

50 हजार जुर्माने का प्रावधान

बाल श्रम कानून को पहले के मुकाबले और सख्त बना दिया गया है। बालक श्रम संशोधन विधेयक 2016 के अनुसार 14 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी प्रकार का काम कराया गया, तो नियोक्ता पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है। दो साल की सजा भी हो सकती है। इसी प्रकार 14 से 17 साल तक के किशोरों से खतरनाक क्षेत्रों में काम लेने पर भी रोक का प्रावधान किया गया है। एक प्रतिवेदन के अनुसार इन 6 जिलों में 5 सौ से अधिक बाल श्रमिक खतरनाक नियोजन में चिन्हित हुए थे

बाल श्रमिकों का नियोजन निषिद्ध

बाल श्रम अधिनियम,1986 के अंतर्गत श्रम एवं रोजगार मंत्रालय,भारत सरकार द्वारा संशोधन कर अधिनियम के नए प्रावधान 1 सितम्बर 2016 से लागू किए गए है। यह कानून अब बाल एवं कुमार श्रम संशोधन अधिनियम 2016 के नाम से जाना जाने लगा है। कारखाना अनिधिनियम, बीड़ी एवं सिगार कर्मकार अधिनियम, मोटर परिवहन कर्मकार अधिनियम, खान अधिनियम तथा मध्यप्रदेश दुकान एवं स्थापना अधिनियम के अंतर्गत भी बाल श्रमिकों का नियोजन निषिद्ध है।

फल के ठेले में काम करता हूं,मम्मी की तबियत ठीक नहीं रहती है जिसके चलते कहीं पर भी काम कर लेता हूं,जिससे जो पैसे मिलेंगे उससे मम्मी की दवा और खाने की व्यवस्था कर सकता हूं। -शिवम,बाल श्रमिक

मैं गाड़ी सुधारने की दुकान में काम करता हूं क्योंकि मुझे शासन की योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है। घर की स्थिति ठीक नहीं है इसलिए काम करने आया हूं। -सोहेल खान,बाल श्रमिक

मध्यप्रदेश शासन ने बाल श्रमिकों का विशेष कोई सर्वे नहीं कराया है। परंतु वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 7.02 लाख कामकाजी बाल श्रमिकों की संख्या दर्शाई गई है अब यह आंकड़ा करीब साढ़े 7 लाख तक पहुंचने की संभावना है। बाल मजदूरी रोकने के लिए कड़े कानून भी बनाए गए है। परंतु प्रशासन कार्रवाई नहीं करता है। जिसके कारण कम उम्र के बच्चे कारखाने,बाईक रिपेरिंग शॉप सहित अन्य में काम करने के लिए मजबूर है। -मनीष शर्मा,प्रांतीय संयोजक, नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच