मोदी हाउस की रजिस्ट्री रोकने निगम ने जिला पंजीयक को लिखा था पत्र, निकाली थी आम सूचना
Nagar nigam

ग्वालियर। मोदी हाउस को कारोबारी नरेश अग्रवाल को देने के फेरे में नगर निगम द्वारा की गई जालसाजियों के खुलासे का अंत नहीं हो रहा है। यहीं कारण है कि 28 साल पहले दो जगह लीज भूमि बिकने के बाद 13 साल पहले निगम ने अपनी लीज पर दी भूमि को बेचने से रोकने के लिए जिला पंजीयक को रजिस्ट्री न करने के लिए पत्र लिखा था, तो साथ ही समाचार पत्र में आम सूचना भी जारी करवाई थी। लेकिन मिलभगत बाद भी निगम जिम्मेदारों ने लीज/प्रीमियम रेंट व 2011 से संपत्तिकर न देने वाले आधिपत्यधारियों को पंजीकृत असाइनमेंट आॅफ लीज ट्रांसफर कर अपराध करने का मौका दिया। साथ ही उसमें अपनी सहभागिता कर नामातंरण के लिए दो समाचार पत्रों में आम सूचना भी निकाली। रेलवे के नए ओव्हर ब्रिज के नीचे स्थित मंशापूर्ण हनुमान मंदिर के सामने बने मोदी हाउस राजस्व ग्राम महलगांव सर्वे क्रमांक 471 की 46125 वर्ग फुट निगम स्वामित्तव वाली है। जिसे वर्ष 1949 में 99 वर्ष की लीज पर सांवलदास मोदी पुत्र देवचंद्र को आवंटित की गई थी। लेकिन सावलदास की मृत्यु पश्चात उक्त लीज भूमि पर वर्ष 1984 में निगम द्वारा बिना अनुबंध संपादित किए तत्कालीन आयुक्त के आदेश के द्वारा पुत्र चिमन भाई मोदी जयंतीभाई मोदी और मोहन भाई मोदी का नाम नामातंरण किया गया। वहीं मोहन मोदी की मृत्यु के पश्चात उनकी अधिपत्य भूमि पर उनकी पत्नी नीलम मोदी, पुत्र अमर मोदी तथा अशोक मोदी का काबिज होकर हुए। किंतु उनके द्वारा नगर निगम में नाम परिवर्तन हेतु कोई आवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया। बाद में मोदी हाउस की जमीन को अपने स्वामित्तव की मानकर लीज पाने वाले सांवलदास मोदी के परिजनों ने वर्ष 1992 में जयंती भाई मोदी की हिस्सेदारी वाली भूमि में से 2133 वर्ग फुट भूमि निर्माण सहित रीना शिवहरे व 1786 वर्ग फुट भूमि निर्माण सहित राज शिवहरे को पंजीकृत विक्रय पत्र द्वारा विक्रय की गई थी और निगम ने इन दोनों भूमियों का पहले नामातंरण किया था, लेकिन विवाद उठने पर दोनों का नामातंरण निरस्त कर दिया गया। क्योंकि भूमि की लीज लेने के दौरान किए गए अनुबंध 2 अगस्त 1952 के बिन्दु चार के अनुसार लीजग्रहिता को लीज भूमि को केवल किराए पर देने के अधिकार थे। लेकिन सावलदास के परिजनों ने बीते 28 सालों में लीज से मिली भूमि को 3 पंजीकृत असाइनमेंट आॅफ लीज ट्रांसफर करने का अपराध किया गया। जिस पर निगम अधिकारी मिलीभगत से मौन धरे रहे।
लोकायुक्त में चल रहा है संपत्तिकर को लेकर प्रकरण
मोदी हाउस की लीज होने के साथ निगम द्वारा लीज/प्रीमियम रेंट 700 रूपये वार्षिक लेना तय था, लेकिन प्रकरण में नामातंरण से पूर्व से लीज रेट व वर्ष 2011 से संपत्तिकर बकाया है और लोकायुक्त में संपत्तिकर वसूली को लेकर वर्तमान में 3 मामले पंजीकृत है, जिनमें निगम अधिकारियों के फसे होने पर जबाव दिए जा रहे है। हालांकि निगमायुक्त द्वारा शासन को भेजे प्रस्ताव में लीजधारक को लाभ पहुचाने का हवाला दिया है।
खुद की आम सूचना निकाल आखिर क्यों की अनदेखी
निगमायुक्त के प्रस्ताव में अनुबंध की शर्तो का उल्लघन होने पर वर्ष 2001 में लीज निरस्त किए जाने हेतु सूचना पत्र जारी किया गया था। साथ ही आगे भूमि विक्रय रोकने के लिए 2007 में जिला पंजीयक को पत्र लिखकर रजिस्ट्री न करने व आम सूचना जारी कर सूचित किया था। लेकिन इसके बाद भी निगम के जिम्मेदारों द्वारा क्यों नरेश अग्रवाल को पंजीकृत असाइनमेंट आॅफ लीज ट्रांसफर होने देना सवालों के घेरे में है। मोदी हाउस के मामले में बहुत कुछ गोल-मोल है, जिसके चलते उसकी लीज/नामातंरण निरस्ती हेतु शासन को प्रस्ताव पहुंचाया जा चुका है।
संभागायुक्त ने अधिवक्ता बुलाकर की लीज फाइल पर चर्चा
जानकारों की मानें तो दो दिन-तीन दिन पहले निगम प्रशासक एमबी ओझा ने मोदी हाउस की लीज फाइल पर निगमायुक्त संदीप माकिन सहित 4 निगम अधिकारियों से बंगले पर चर्चा कर चुके है और उसके बाद उन्होंने एक अधिवक्ता से पूरे मामले में बुलाकर पूरी फाइल पर जानकारी ली है। जिसमें अधिवक्ता की निगेटिव रिपोर्ट पर फाइल को पुन: राजस्व अधिकारियों के हवाले कर दिया गया है।