बैसाखी पर गुरुद्वारों में नहीं पहुंचे श्रद्धालु, रागी जत्थों ने की गुरुवाणी

जबलपुर । बैसाखी पर्व संस्स्कारधानी में सादगी पूर्वक मनाया गया। सिंख धर्म के लोगों ने बैसाखी पर्व के अवसर पर अपने घरों पर ही अरदास किया और प्रसाद बनाया। साथ ही मोबाइल फोन के माध्यम से बैसाखी पर्व की बधाईयां दी। गौरतलब है कि बैसाखी पर्व पर इस बार कोरोना वायरस के कारण गुरुद्वारों में श्रद्धालु नहीं गए हैं, लेकिन प्रेमनगर गुरुद्वारा, रांझी और गोरखपुर सहित अन्य गुरुद्वारों में रागी,जत्थों ने गुरुवाणी शब्द कीर्तन किया गया। बैसाखी पर प्रेम नगर गुरुद्वारा में होने वाले तीन दिवसीय कार्यक्रम स्थगित कर दिए गए हैं।
गुरु गोविंद सिंह की याद में मनाया जाता है पर्व
बैसाखी पंजाबियों का त्योहार है जो सीधे प्रकृति, नई फसल से जुड़ा है। इस दिन को पंजाबी समुदाय में नए साल के तौर पर मनाया जाता है। इस त्योहार की खुशी पंजाब और हरियाणा के किसान इसलिए मनाते है क्योंकि फसल पक चुकी होती है और उसे काटने की खुशी मनाई जाती है। इसके अलावा ऐतिहासिक परिदृश्य की बात करें तो बैशाखी का पर्व सिखों के 10 वें गुरु गोविंद सिंह जी की याद में भी मनाया जाता है। इसी दिन उन्होंने साल 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस साल पूरे देश में कोरोना वायरस की महामारी के कारण लोग अपनेअ पने घरों में हैं। ऐसे में बैसाखी का जश्न तो संभव नहीं है।
परिवार के साथ मनाया पर्व
बैसाखी पर्व के अवसर पर प्रत्येक परिवारों द्वारा लॉक डाउन को सफल बनाते हुए घर में ही रहकर जपुजी साहिब एवं चौपयी साहिब के पाठ किए गए। अवतार सिंह चग्गर का परिवार और गोरखपुर स्थित मनमोहन सिंह के परिवार ने बताया कि पाठ के उपरान्त सम्पूर्ण मानव जाति के भले के लिए अरदास की गई जिसके अंतर्गत यह प्रार्थना की गई कि ईश्वर कोरोना महामारी के प्रकोप से सुरक्षा प्रदान करे।
हम लोग बैसाखी पर्व पर घरों में ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए अदरास की,और गुरुद्वारा नहीं गए हैं। मोबाइल से बधाईयां दी हैं। -अवतार सिंह चग्गर, दशमेश द्वार
गुरु गोविंद सिंह जी की याद में यह पर्व मनाया जाता है, इस बार गुरुद्वारे में रागी,जत्थे ने ही गुरुवाणी की है, और सादगी पूर्वक पर्व मनाया गया है, हम लोग भी घरों पर ही थे। -कुलदीप कौर, कृपाल चौक
बैसाखी पर्व पर इस बार गुरुद्वारा नहीं गए हैं, घर पर ही जपुजी साहिब एवं चौपयी साहिब के पाठ किए हैं, प्रसाद भी घरों बनाया हैं। -गुरजिन्दर कौर, दशमेश द्वार