सोयाबीन की दो नई प्रजातियां ईजाद नहीं लगेगा कीट बंपर होगा उत्पादन

जबलपुर । कृषि और कृषकों की उन्नति के लिए निरंतर चल रहे अनुसंधानों के चलते जवाहर लाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता हाथ लगी है। वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की दो नई उन्नत प्रजातियां विकसित कर ली हैं। जिनका नाम जेएस 20-94 और जेएस 20-116 दिया गया है। इनके बीज का विमोचन वर्ष 2019 में किया गया। इस वर्ष इन प्रजातियों का बड़े पैमाने पर विश्वविद्यालय द्वारा बुआई कराई जाएगी। ताकि अगले वर्ष से किसानों को सोयाबीन की इस प्रजाति को उपलब्ध कराया जा सकेगा। कीट एवं रोग प्रतिरोधी ये प्रजातियां विपुल उत्पादन के लिए मील का पत्थर साबित होंगी। ये दोनों प्रजातियां एक एकड़ में करीब 35 किलों की बुआई में 8 से 10 क्विंटल की पैदावार देगी। गौरतलब है कि विश्व में मध्यप्रदेश को सोयाराज्य का दर्जा दिलाने का श्रेय कृषि विवि द्वारा विकसित सोयाबीन को जाता है। वर्तमान में पूरे भारत वर्ष में कुल 43 प्रजातियों का प्रजनक बीज उत्पादन कार्यक्रम लिया जा रहा है। जिसमें कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित 08 प्रजातियों जिसमें जेएस 20-34, 335, 20-29, 93-05, 20-69, 95-60, 20-98 एवं जेएस 97-52 हैं। इन प्रजातियों में जेएस 20- 34 शीघ्र पकने वाली की मांग सर्वाधिक है। वर्ष 2019 में दो और नवीन किश्मों जेएस 20-94 एवं जेएस 20-116का विकास किया गया। संचालक प्रक्षेत्र डॉ. डीके पहलवान ने बताया कि वर्ष 2020-21 में प्रजनक बीज की मांग लगभग 17000 क्विंटल निर्धारित की गई है। जिसमें से केवल जेएस प्रजातियों की मांग लगभग 13000 क्विंटल है जो की कुल मांग का 74 प्रतिशत से अधिक होती है।
इन 3 प्रजातियों ने द्वितीय क्रांति में अपना योगदान दिया
पादप प्रजनन एवं अनुवांशिकी विभाग के अंर्तगत सोयाबीन परियोजना प्रशरी डॉ. मनोज श्रीवास्तव ने बताया कि भारत वर्ष का 50 प्रतिशत से अधिक सोयाबीन का उत्पादन केवल मध्यप्रदेश में होता है। जो कि देश में सर्वाधिक है। इसलिए मध्यप्रदेश को सोया राज्य का दर्जा प्राप्त है। साथ ही यह भी बताया कि विश्व विद्यालय द्वारा विकसित तीन प्रजातियों, जेएस 93-05, जेएस 95-60 एवं जेएस 20-34 को क्रमश: वर्ष 2002, 2006 एवं 2014 में जारी किया गया था। इन तीनों प्रजातियों ने सोयाबीन की द्वितीय क्रांति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सोयाबीन की 18 प्रजातियों के विकास में डॉ.एसके मेहता, डॉ. एएन श्रीवास्तव, डॉ. मनोज श्रीवास्तव, डॉ. आरके वर्मा, डॉ. स्तुति मिश्रा एवं श्री दिनेश पंचेश्वर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
70 के दशक में सोयाबीन का उत्पादन 487 कि.ग्रा.प्रति हेक्टेयर था जो आज 1227 कि.ग्रा.प्रति हेक्टेयर हो गया है। विगत 6 वर्षो में विश्वविद्यालय द्वारा 6 किश्मों का विकास किया गया है जो कि शरतवर्ष के विश्न्नि जलवायु क्षेत्रों के साथ ही साथ सम्पूर्ण प्रदेश के लिए खेती हेतु उपयुक्त हैं। डॉ. प्रदीप कुमार बिसेन , कुलपति ज.ने.कृ.वि.वि.
सोयाबीन की नवीनतम विकसित जेएस 20-34, 20-29, 20-69, 20-98, जेएस 20-94 एवं जेएस 20- 116 प्रजातियां लगभग 85 से 100 दिनों में तैयार होकर 18-25 क्ंव. प्रति हेक्टेयर पैदावार देती है। यह सभी प्रजातियां मध्यप्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ एवं उत्तरप्रदेश में कृषि को लाभदायक बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। - डॉ. पीके मिश्रा, संचालक अनुसंधान सेवाएं
मध्यप्रदेश में सोयाबीन के विकास में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय का महत्वपूर्ण योगदान है। इसके साथ ही साथ किस्मों की बीजों तथा कृषि संबंधी नवीन तकनीकी के विकास में विश्वविद्यालय की भूमिका अग्रणी रही है। विश्वविद्यालय द्वारा समस्त फसलों के बीजों का अंकुरण परीक्षण प्रति वर्ष बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है। - डॉ. धीरेन्द्र खरे,अधिष्ठाता कृषि संकाय