मप्र की जनजातियों में नृत्य, उत्सव में मुखौटे पहनने और उनकी पूजा करने की है परंपरा

मप्र की जनजातियों में नृत्य, उत्सव में मुखौटे पहनने और उनकी पूजा करने की है परंपरा

प्रदेश के आदिवासियों में त्योहारों के अवसर पर लकड़ी के मुखौटों का अपना एक अलग ही महत्व है। किसी अवसर पर कहीं इन मुखौटों को देवी, देवता मानकर पूजा जाता है तो कहीं इन्हें पहनकर नृत्य - नाट्य में प्रयोग किया जाता है। हर मुखौटे की एक अलग कहानी है। यह मुखौटे आदिवासियों द्वारा मिट्टी और लकड़ी के बनाए जाते हैं। कई मुखौटों का नवरात्रि के अवसर पर आदिवासियों द्वारा देवी मानकर पूजन भी किया जाता है। प्रदेश के आदिवासियों द्वारा बनाए गए कई मुखौटे मप्र जनजातीय संग्रहालय की दीवार पर लगाए गए हैं। इनमें प्रत्येक मुखौटा अपने आप में कुछ कहता है और उसका अपना ही महत्व है। भारत में कथकली, यक्षगान, छाऊ नृत्य और विभिन्न रामलीला शैलियों में विविध मुखौटों का प्रयोग होता है। वहीं मप्र के आदिवासियों में नृत्य, नाट्य, उत्सव आदि अवसरों पर मुखौटे धारण करने और उनकी पूजा करने की परंपरा रही है।

मंडला के आदिवासी चैत्र माह की नवरात्रि में जवारा बोते हैं।

इस दौरान जवारा के स्थान पर मल्लूदेव की मुखौटा मूर्ति स्थापित कर पूजा की जाती है। मल्लूदेव बाहरी बाधओं के रक्षक देवता के रूप में पूजित और बच्चों को निरोग रखने वाले देवता हैं। मुखौटे की आकृति: मुंह से जीभ बाहर होना मल्लूदेव की विकरालता का प्रतीक है। मुखौटे की विशिष्ट बनावट के साथ ही आकृति विचित्र और रहस्यमयी है। लकड़ी: मल्लूदेव का मुखौटा बनाने के लिए खम्हार, बीजा और सेमर की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। शिल्पकार: सुखनंदन व्याम, सुनपुरी, मंडला।

महरेलिन माता की चैत्र अमावस्या पर होती है पूजा

आदिवासियों का मनना है कि महरेलिन माता के प्रसन्न होने से पीड़ा, बाधा और महामारियां नहीं आती हैं। वहीं इनके प्रकोप से हर तरह के संकट आते हैं। चैत्र अमावस्या के दिन महरेलिन माता की लकड़ी अथवा पत्थर की मूर्ति की पूजा की जाती है। लकड़ी का मुखौटा उसी महरेलिन माता की मुखाकृति का प्रतिरूप है। मुखौटे की आकृति: सिर पर बाल, आंखें बड़ी गोल, लंबी सी नाक, मुंह खुला, ओंठ बाहर, दांत खुले महरेलिन माता की स्पष्ट रूप रेखा है। लकड़ी: साल, बीजा और खम्हेर। शिल्पकार: सुखनंदन व्याम, सुनपुरी, मंडला।

इस तरह बनाए जाते हैं लकड़ी के मुखौटे

मुखौटों के निर्माण के लिए सिवना, सागौन, आम, खम्हार, सेमर, डूमर, सलैया आदि लकड़ी का चयन करते हैं। ये मुखौटे वजनी और बड़े होते हैं। एक निश्चित आकार की ठोस व मोटी लकड़ी को सावधानी पूर्वक खोखला किया जाता है। मुख्य भाग पर नाक, कान के चिह्न बनाए जाते हैं। मुंह और आंखें बनाने के लिए उस भाग को काट दिया जाता है। मुखौटे का मुंह अक्सर चौकोर अथवा आयताकार रखा जाता है। कभी-कभी नथुने भी खोखले कर दिए जाते हैं।